कपट की बूंदें

गुरु बायज़ीद के पास दूर-दूर से लोग अपनी समस्याएं लेकर आते थे और उचित समाधान पाकर लौट जाते थे। एक बार दो गहरे मित्र उनके पास पहुंचे और मित्रता अमर रखने के उपाय बताने को कहा।

गुरु ने उपदेश देने के बजाय उन्हें व्यावहारिक तरीके से समझाना चाहा और उन्हें पाकशाला में लेकर चले गए। चूल्हे पर उबल रहे दूध में उन्होंने एक मित्र से नींबू काटकर एक बूंद टपकाने को कहा। मित्र ने तुरंत आज्ञा का पालन किया। दूध में नींबू की बूंद जाते ही सारा दूध फट गया। अब गुरु जी बोले, ‘तुम्हारी मित्रता अभी इस बिना फ़टे दूध की तरह ही शुद्ध, गुणवान और संगठित है

पर इसमें कभी भी यदि कपट का क्षणिक विचार पड़ गया तो इसे भी नींबू पड़े इस दूध की भांति नष्ट होते देर नहीं लगेगी। तुम्हारे हृदय भी इस फ़टे दूध की तरह अलग-अलग हो जाएंगे। अतः मित्रता निर्बाध चलती रहे, इसके लिए ध्यान रखें कि इसमें छल-कपट का तनिक विचार भी न आए।’ दोनों मित्रों ने संतुष्ट होकर सिर झुका लिया।

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