सुप्रीम कोर्ट ने फ़ारूक़ अब्दुल्ला के खिलाफ देशद्रोह की याचिका करी रद्द

नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को जम्मू-कश्मीर के पूर्व मुख्यमंत्री फारूक अब्दुल्ला के खिलाफ आर्टिकल 370 को लेकर उनकी टिप्पणी के लिए कार्रवाई की मांग वाली याचिका खारिज कर दी। देशद्रोह का मुकदमा चलाए जाने की मांग करने वाली याचिका पर सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि सरकार से अलग विचार रखना कोई देशद्रोह नहीं है।

न्यायमूर्ति संजय किशन कौल  और हेमंत गुप्ता की पीठ ने यह फैसला दिया। फारूक अब्दुल्ला के खिलाफ याचिका पर विचार करने से इनकार करते हुए पीठ ने कहा कि सरकार की राय से अलग विचारों की अभिव्यक्ति को देशद्रोही नहीं कहा जा सकता है। पीठ ने याचिकाकर्ता पर 50 हजार रुपये का जुर्माना भी लगाया है। सुप्रीम कोर्ट में रजत शर्मा और नेह श्रीवास्तव ने याचिका दाखिल की थी, जिसमें जम्मू-कश्मीर में आर्टिकल 370 के खिलाफ बयान देने पर फारूक अब्दुल्ला के खिलाफ देशद्रोह की कार्यवाही करने के आदेश देने की मांग की गई थी। याचिका में यह भी मांग की गई थी कि नेता की संसद की सदस्यता को अमान्य घोषित किया जाए और उन पर आईपीसी की धारा 124-ए के तहत देशद्रोह का आरोप लगाया जाए।

नेशनल कांफ्रेंस के नेता और जम्मू-कश्मीर के पूर्व मुख्यमंत्री फारूक अब्दुल्ला ने अनुच्छेद 370 को लेकर विवादित बयान दिया था, जिसमें उन्होंने कहा था कि जम्मू-कश्मीर में दोबारा अनुच्छेद 370 की बहाली में चीन से मदद मिल सकती है। इसके साथ ही उन्होंने मोदी सरकार के इस कदम का समर्थन करने वालों को गद्दार बताया था। फारूक अब्दुल्ला ने इंडिया टुडे से बातचीत में कहा था, ‘जहां तक चीन का सवाल है मैंने तो कभी चीन के राष्ट्रपति को यहां बुलाया नहीं। हमारे वजीर-ए-आजम (प्रधानमंत्री) ने उसे गुजरात में बुलाया, उसे झूले पर भी बिठाया, उसे चेन्नई भी ले गए, वहां भी उसे खूब खिलाया, मगर उन्हें वह पंसद नहीं आया और उन्होंने आर्टिकल 370 को लेकर कहा कि हमें यह कबूल नहीं है। और जब तक आप आर्टिकल 370 को बहाल नहीं करेंगे, हम रुकने वाले नहीं हैं, क्योंकि तुम्हारे पास अब यह खुल्ला मामला हो गया है। अल्लाह करे कि उनके इस जोर से हमारे लोगों को मदद मिले और अनुच्छेद 370 और 35A बहाल हो।’

गौरतलब है कि मोदी सरकार ने 5 जुलाई 2019 को जम्मू-कश्मीर को विशेष दर्जा देने वाले अनुच्छेद 370 के अधिकतर प्रावधानों को निष्प्रभावी कर दिया था। पाकिस्तान और उसके साथी चीन ने इसका विरोध किया था। हालांकि, भारत ने उन्हें देश के आंतरिक मामलों में दखल नहीं देने की चेतावनी दी थी।

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