भाग्य बनाम कर्म
एक बार विधाता कागज़ पोथी लेकर लोगों का भाग्य लिख रहे थे। अलग-अलग कार्यों के हिसाब से कई भागों में भाग्य लिखा जा रहा था। विधाता को इस कार्य में किसी का दखल पसंद नहीं था।
संयोग से एक सिद्ध पुरुष वहां आ पहुंचे और विधाता की पोथी को बांचने लगे। विधाता ने उनको शिष्टता से समझाया-इसे मेरे अलावा किसी को भी देखने की मनाही है। यह जो लिखा जा रहा है, वह किसी की नज़र में नहीं आना चाहिए।
आगंतुक ने प्रश्न किया-इसमें ऐसा क्या लिखा जा रहा है जो मुझे भी नहीं दिखाया जा सकता। इस पर विधाता बोले-देखो, इसे बताने पर अनर्थ ही अनर्थ है। किसी का भाग्य अच्छा है और उसे ज्ञात हो गया तो उसका पुरुषार्थ घट जाएगा।
उसे अच्छे भाग्य का अहंकार तो रहेगा ही, वह स्वयं भी नकारा हो जाएगा। और यदि किसी का भाग्य खोटा हो और उसे पता चल गया तो उसमें निराशा ही छा जाएगी। वह स्वयं को कुछ करने लायक ही नहीं समझेगा।
दोनों ही प्रकार के कर्मफल देखकर मानव जाति को नुकसान ही होगा और संसार के गतिचक्र में व्यवधान पड़ जाएगा। इसलिए किसी को उसका भाग्य ना बताना ही श्रेयस्कर है।