लखनऊ पीजीआई: दवा घोटाले में कई अधिकारी व कर्मियों पर संदेह

लखनऊ : लखनऊ पीजीआई में लाखों रुपये के दवा घोटाले में कुछ स्थायी अधिकारी व कर्मचारियों की भूमिका संदेह के घेरे में है। संस्थान निदेशक के निर्देश पर गठित कमेटी सोमवार को इनके नए सिरे से बयान लेगी। रविवार को फर्जीवाड़े से जुड़ी फाइलें और मरीजों के पर्चे खंगाले गए। नवीन ओपीडी की फर्मेसी में लगे कम्प्यूटर से दवा के वितरण और भुगतान का पूरा ब्याेरा निकाला गया है। मुकदमा दर्ज होने के बाद पीजीआई प्रशासन ने आठ संविदा कर्मियों को संस्थान के भीतर प्रवेश पर रोक लगा दी है। वही संस्थान प्रशासन घोटाला रोकने के लिए बायोमेट्रिक व्यवस्था शुरू करने की योजना बना रहा है ताकि फर्जी पर अंकुश लगाया जा सके।

संस्थान प्रशासन फर्मेसी का काम देख रहे कुछ  कर्मचारियों व अधिकारियों के कंप्यूटर पर कमेटी की नजर है। इसकी पड़ताल कर रही है। ओपीडी फार्मेसी, वार्ड, ओटी, एचआरएफ काउंटर पर काम करने वाले डाटा एंट्री आपरेट, मैसेंजर( दवा पहुंचाने वाले) की निगरानी के लिए प्रभारी रखे गए हैं। इन लोगों की भूमिका पर सवाल उठ रहा है। बिना इनकी सहमति के कोई भी हेर-फेर नहीं हो सकता।

मुख्यमंत्री और प्रधानमंत्री कोष व सरकारी विभागों के कर्मचारियों के इलाज के रुपये पीडी खाते में आते हैं। इन मरीजों के खातों में फर्जीवाड़ा की आशंका रहती है। वह फर्जी पर्चा बनवाकर डॉक्टरों के चाली हस्ताक्षर से दवाई निकाल लेते थे और फिर उन्हें कहीं बेच देते थे। आरोपियों ने उन मरीजों के पीडी खाते से दवा खरीद ली।  जिसका इलाज पूरा ही नहीं हुआ था। प्लास्टिक सर्जरी विभाग में ऑपरेशन कराने वाले मरीज को 10 दिन पहले डॉक्टरों ने  मरीज को भर्ती करने की तारीख दी और रुपये की व्यवस्था करने की बात कही। मरीज ने जब पीडी खाता चेक कराया तो पता चला उसके खाते से कैंसर की दवाएं खरीदी गईं। मरीज ने इसकी शिकायत पीजीआई निदेशक डॉ. आरके धीमान से की। तब जाकर मामला सामने आया।

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