गोरखपुर के सुमेर सागर ताल पर बनी कालोनी शीघ्र ही होने जा रही ध्‍वस्‍त, प्रशासन ने कर ली तैयारी पूरी

सुमेर सागर ताल के पास निर्माण करा चुके लोगों से ज्वाइंट मजिस्ट्रेट गौरव सिंह सोगरवाल ने साफ कह दिया है कि सात दिन के अंदर घर खाली कर दें। ताल की जमीन पर जो भी निर्माण हुए हैं वह ध्वस्त किए जाएंगे। ऐसे में जो लोग अब भी रह रहे हैं वह लोग घरों को जल्दी खाली कर दें।

मकान खाली करने का अल्टीमेटम

ज्वाइंट मजिस्ट्रेट ने बताया कि सुमेर-सागर ताल की जमीन पर निर्माण करा चुके कुछ लोग मिलने आए थे। सभी को सात दिन का समय दिया गया है। इसके साथ ही तहसील में जांच शुरू करा दी गई है कि आखिर ताल की जमीन का खारिज-दाखिल कैसे हुआ। उन्होंने बताया कि सुमेर सागर ताल से कब्जा हटाए जाने के बाद गोरखपुर विकास प्राधिकरण, नगर-निगम और राजस्व विभाग की भूमिका की जांच होगी। साथ ही वहां की जमीन के सबसे विक्रेता और क्रेता के खिलाफ भी भू-माफिया एक्ट में कार्रवाई की जाएगी। ज्वाइंट मजिस्ट्रेट ने कहा कि राजस्व अभिलेख में 15 एकड़ ताल सुमेर सागर और सात एकड़ नजूल भूमि के रूप में दर्ज है। ताल और नजूल की इस भूमि पर कुछ लोगों ने आवास बनवा लिया है।

सभी मानचित्रों की जांच करेगा जीडीए

ताल सुमेर सागर में अवैध निर्माण के मामले में गोरखपुर विकास प्राधिकरण (जीडीए) को भी कटघरे में खड़ा किया जा रहा है। सवाल उठने के बाद प्राधिकरण सुमेर सागर व जटेपुर क्षेत्र में पास किए गए सभी मानचित्रों की जांच शुरू करने जा रहा है। इस संबंध में सदर तहसील से रिपोर्ट भी मंगाई गई है। किसी के भूखण्ड में यदि कमी मिली तो उसका मानचित्र निरस्त कर दिया जाएगा। मानचित्र पास करने में जो शामिल होंगे, उनकी जांच कर कार्रवाई की भी तैयारी है। सदर तहसील प्रशासन की ओर से लगातार ताल सुमेर सागर में अतिक्रमण के खिलाफ अभियान चलाया जा रहा है। ज्वाइंट मजिस्ट्रेट सदर गौरव सिंह सोगरवाल ने बारीकी से जांच कर ताल की जमीन पर हुए निर्माण को अवैध बताया था और उन्हें ध्वस्त करने की कार्रवाई भी चल रही है। वहां कुछ ऐसे मकान भी निर्मित मिले, जिनका मानचित्र जीडीए से पास है। यह बात प्रकाश में आने के बाद प्राधिकरण पर सवाल उठने लगे। जिस पर जीडीए उपाध्यक्ष ने सभी मानचित्रों की नए सिरे से जांच कराने को कहा।

गलत तरीके से पास हुआ मानचित्र, होगा निरस्त

ताल सुमेर सागर में जिस मकान का मानचित्र पास होने पर सवाल उठाए जा रहे हैं, उसकी जांच जीडीए ने की है। मानचित्र गलत तरीके से पास हुआ है। जीडीए के सचिव रामसिंह गौतम ने बताया कि यह मानचित्र गलत है, इसे निरस्त किया जा रहा है। जीडीए की ओर से गूगल मैप के आधार पर जुटाई गई जानकारी के अनुसार इस जमीन पर 2002 में मिट्टी गिराई गई और 2003 में निर्माण शुरू हो गया।

मिल चुकी हैं आधा दर्जन से अधिक फाइलें

जीडीए में इस काम को प्राथमिकता के आधार पर किया जा रहा है। अबतक करीब सात फाइलें मिल चुकी हैं, और की भी तलाश है। अधिकतर में बैनामा का पेपर न होने से गाटा नम्बर पता नहीं चल पा रहा है। जिसके चलते तहसील से ताल के सभी गाटा नम्बर की जानकारी मांगी गई है। उसी के आधार पर मानचित्र निकाल कर जांच की जाएगी। अनुमान है कि जितनी फाइलें दाखिल की गई हैं, उन सभी ने मकान बनवा लिए होंगे।

ताल सुमेर सागर में मानचित्र पास होने की जांच की जा रही है। सुमेर सागर के साथ जटेपुर का विवरण भी तहसील से मंगाया गया है। फ़ाइल की खोज जारी है। जिसकी भी जमीन में कमी होगी, उसका मानचित्र निरस्त होगा। – अनुज सिंह, उपाध्यक्ष, जीडीए।

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