आज है वट सावित्री व्रत की पूजा, जानिए संपूर्ण विधि

आज वट सावित्री (Vat Savitri) का व्रत है। हिन्‍दू धर्म में सुहागिनों के लिए वट सावित्री का व्रत बेहद खास है। मान्‍यता है कि इस व्रत के प्रभाव से पति की उम्र लंबी होती है और वैवाहिक जीवन में सुख-शांति आती है। ‘स्कंद’ और ‘भविष्योत्तर’ पुराण’ के अनुसार वट सावित्री का व्रत (Vat Savitri Vrat) हिन्‍दू कैलेंडर की ज्येष्ठ शुक्ल पूर्णिमा तिथि पर करने का विधान है।
वहीं, ‘निर्णयामृत’ इत्यादि ग्रंथों के अनुसार वट सावित्री व्रत पूजा ज्येष्ठ शुक्ल पक्ष की अमावस्या पर की जाती है. उत्तर भारत में यह व्रत ज्येष्ठ कृष्ण अमावस्या को ही किया जाता है। ग्रेगोरियन कैलेंडर के अनुसार यह व्रत हर साल मई या जून महीने में आता है।
वट सावित्री व्रत में बरगद के पेड़ का महत्‍व
वट का मतलब होता है बरगद का पेड़।  इस व्रत में वट का बहुत महत्व है। कहते हैं कि इसी पेड़ के नीचे स‍ावित्री ने अपने पति को यमराज से वापस पाया था। सावित्री को देवी का रूप माना जाता है। हिंदू पुराण में बरगद के पेड़े में ब्रह्मा, विष्णु और महेश का वास बताया जाता है। मान्यता के अनुसार ब्रह्मा वृक्ष की जड़ में, विष्णु इसके तने में और शि‍व उपरी भाग में रहते हैं।  यही वजह है कि यह माना जाता है कि इस पेड़ के नीचे बैठकर पूजा करने से हर मनोकामना पूरी होती है।

वट सावित्री व्रत की तिथि और शुभ मुहूर्त 
वट सावित्री व्रत की तिथि: 22 मई 2020
अमावस्‍या तिथि प्रारंभ: 21 मई 2020 को रात 9 बजकर 35 मिनट से
अमावस्‍या तिथि समाप्‍त: 22 मई 2020 को रात 11 बजकर 8 मिनट तक

वट सावित्री पूजन सामग्री 

सत्यवान-सावित्री की मूर्ति, धूप, मिट्टी का दीपक, घी, फूल, फल, 24 पूरियां, 24 बरगद फल (आटे या गुड़ के) बांस का पंखा, लाल धागा, कपड़ा, सिंदूर, जल से भरा हुआ पात्र और रोली.

वट सावित्री व्रत विधि 

महिलाएं सुबह उठकर स्‍नान कर नए वस्‍त्र पहनें और सोलह श्रृंगार करें।
अब निर्जला व्रत का संकल्‍प लें और घर के मंदिर में पूजन करें।
अब 24 बरगद फल (आटे या गुड़ के) और 24 पूरियां अपने आंचल में रखकर वट वृक्ष पूजन के लिए जाएं।
अब 12 पूरियां और 12 बरगद फल वट वृक्ष पर चढ़ा दें।
इसके बाद वट वृक्ष पर एक लोट जल चढ़ाएं।
फिर वट वक्ष को हल्‍दी, रोली और अक्षत लगाएं।
अब फल और मिठाई अर्पित करें।

इसके बाद धूप-दीप से पूजन करें।
अब वट वृक्ष में कच्‍चे सूत को लपटते हुए 12 बार परिक्रमा करें।
हर परिक्रमा पर एक भीगा हुआ चना चढ़ाते जाएं।
परिक्रमा पूरी होने के बाद सत्‍यवान व सावित्री की कथा सुनें।
– अब 12 कच्‍चे धागे वाली एक माला वृक्ष पर चढ़ाएं और दूसरी खुद पहन लें।
अब 6 बार माला को वृक्ष से बदलें और अंत में एक माला वृक्ष को चढ़ाएं और एक अपने गले में पहन लें।
पूजा खत्‍म होने के बाद घर आकर पति को बांस का पंख झलें और उन्‍हें पानी पिलाएं।
अब 11 चने और वट वृक्ष की लाल रंग की कली को पानी से निगलकर अपना व्रत तोड़ें।
वट सावित्री व्रत के दिन ही शनि जयती भी मनाई जाती है.

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