होली का शास्त्रो अनुसार जानें महत्व, धार्मिक ग्रंथों में एक पौराणिक कथा का भी किया गया है वर्णन
Holi को रंगों और आनंद का त्यौहार मनाया जाता है। चारों और रंगों की बहार छाई रहती है और सारे गिले-शिकवे भूलकर लोग एक-दूसरे को रंग लगाते रहते हैं। Holi का शास्त्रोक्त महत्व है और धार्मिक ग्रंथों में एक पौराणिक कथा का वर्णन किया गया है। इस कथा के अनुसार भक्त प्रहलाद को जलाने की कोशिश होलिका के द्वारा की गई थी, लेकिन होलिका आग में जल गई थी और भगवान विष्णु की कृपा से प्रहलाद बच गए थे।
शुकाचार्य ने दी हिरण्यकश्यप को तपस्या की सलाह
महर्षि कश्यप की कई पत्नियां थी जिसमे से एक का नाम दिति था। दिति के दो पुत्र थे हिरण्यकश्यप और हिरण्याक्ष। मान्यता है कि सतयुग में श्रीहरी ने हिरण्याक्ष को वराह अवतार लेकर मारा था और धरती को इसके अत्याचारों से मुक्ति दिलवाई थी। हिरण्यकश्य दैत्यों के राजा थे और अपने भाई की मौत का बदला श्रीहरी से लेना चाहता था। इसके लिए उसने दैत्य गुरु शुक्राचार्य से परामर्श किया। गुरु शुक्राचार्य ने कहा कि यदि मेरी बताई तपस्या तुम कर लोगे तो तीनों लोकों में तुमसे ज्यादा वीर कोई नहीं होगा। हिरण्यकश्यप ने भगवान विष्णु को हराने के लिए भगवान ब्रम्हा और महादेव की घोर तपस्या की देवताओं को जब इस बात की जानकारी मिली, तो उन्होंने ब्रह्मा को तपस्या पूरी होने से पहले ही हिरण्यकश्यप के पास भेज दिया और इस तरह उसकी तपस्या पूरी नहीं हो पाई। उसने ब्रह्मा से वरदान प्राप्त किया कि उसको मानव मार सके न जानवर, ना दिन में मृत्यु हो न रात में, ना घर के अंदर मौत आए न बाहर, जल में मारा जा सके न धरती पर। ना ही अस्त्र, शस्त्र से मृत्यु हो।
हिरण्यकश्यप ने दिया स्वयं की पूजा का आदेश
वरदान पाकर वह शक्तिशाली हो गया और अपनी शक्ति का दुरुपयोग करने लगा। हिरण्यकश्यप ने इंद्र का राज्य छीन लिया और तीनों लोकों में उपद्रव मचाने लगा। उसने अपने राज्य में भगवान विष्णु की पूजा पर प्रतिबंध लगा दिया और आदेश दिया कि लोग मुझे भगवान मानकर मेरी पूजा करें, लेकिन हिरण्यकश्यप का पुत्र प्रह्लाद परम विष्णु भक्त था। उसने अपने पुत्र प्रह्लाद को विष्णु भक्ति बंद करने के लिए काफी समझाया, लेकिन प्रह्लाद की विष्णु भक्ति जारी रही। काफी प्रताड़ना देने के बाद भी जब प्रह्लाद की विष्णुभक्ति बंद नहीं हुई तो उसने अपनी बहन होलिका को बुलवाया। होलिका को अग्नि में न जलने का वरदान प्राप्त था। हिरण्यकश्यप के आदेश से होलिका प्रह्लाद को होली में लेकर बैठ गई। लेकिन प्रह्लाद की विष्णुभक्ति की वजह से होली तो अग्नि में जलकर खाक हो गई और प्रह्लाद सकुशल धधकती अग्नि से बाहर आ गया। यह घटना फाल्गुन माह की पूर्णिमा तिथि को हुई थी इसलिए इस दिन Holi का पर्व मनाया जाता है।