सूर्यास्त के बाद होली जलाने का है विधान, होलिका दहन की लपटों में दिख सकता है भविष्य

पौराणिक शास्त्रों में होली के पर्व का बड़ा महत्व बताया गया है और इसको देवी-देवताओं से जोड़ा गया है। शास्त्रों में होलिका को जलाने का मुहूर्त बताया गया है इसके अनुसार जब पूर्णिमा तिथि दो होती है। ऐसी परिस्थिति में दूसरे दिन की पूर्णिमा तिथि को होली जलाना चाहिए। प्रदोष काल में भद्रा न हो ऐसे समय सूर्यास्त के बाद होली जलाने का विधान है। भद्रा के आरंभ की पांच घड़ी को भद्रा का मुख और इसके बाद की तीन घड़ी को भद्रा की पूंछ कहा जाता है। कुछ आचार्यों के अनुसार होलिका दहन भद्रा की पूंछ में करा जा सकता है। इसके साथ ही जानकारों का यह भी मानना है कि प्रतिपदा, चतुर्दशी तिथि में होलिका दहन से विपदाएं आती है।

प्रतिपद भूत भद्रासु यार्चिका होलिका दिवा।

संवत्सरन्तु न द्रष्टं पुर दहति सादभूतम।।

शास्त्रों के अनुसार भद्रा में होलिका दहन से उत्पात होते हैं और देश में अशांति का माहौल पैदा हो जाता है।

होली दहन के लिए लकड़ी इकट्ठा करने का है विधान

होली के डंडे को गाड़ने के साथ ही लकड़ियों को इकट्ठा करने का काम प्रारंभ हो जाता है, लेकिन शास्त्रों में फाल्गुन मास के शुक्ल पक्ष की पंचमी से लेकर पूर्णिमा तक लकड़ी-कंडे इकट्ठा करने का विधान है। नारद पुराण के अनुसार फाल्गुन मास की पूर्णिमा तिथि को घर या गांव ,शहर के चौराहे पर जमीन को स्वच्छ कर गाय के गोबर से लिपकर लकड़ी, कंडे, घास-फूस आदि इकट्ठा करें। होली को सजाएं और उसके बाद विधि-विधान से उसकी पूजा कर होलिका का दहन करें।

फाल्गुने पौर्णमायान्तु होलिका पूजनं स्मृतम्।

पंचयं सर्वकाष्ठानां पातालानन्च कारयेत।।

होलिका दहन के बाद अग्नि में बिजौरा, धान का लावा, नीबू, घी मिश्रित दूध आदि से मत्रोच्चार करते हुए हवन कर आहूति देना चाहिए। होलिका दहन में यह माना जाता है कि होलिका का शव जल रहा है इसलिए होली की तीन बार परिक्रमा करना चाहिए। भविष्य पुराण के अनुसार इस दिन चांडाल के स्पर्श का विशेष विधान है। मान्यता है कि इस दिन चांडाल का स्पर्श करने से भविष्य में विपदा नहीं आती है।

होली की अग्नि से पता चलता है भविष्य

होली की उठती ज्वालाओं से आने वाले समय का भविष्य भी देखा जा सकता है। यदि होली की लपटें पूर्व दिशा की ओर जाएं तो वह राज्य और उसमे रहने वाले लोगों के लिए समृद्धि का सूचक होती है। अग्निकोण की लपटें अग्नि कांड भय बताती है। दक्षिण और नैऋत्य की लपटें अकाल, युद्ध और आपदा को बताती है। पश्चिम की ओर उठती लपटें भारी वर्षा का संकेत देती है। वायव्य से आंधी का संकेत मिलता है। उत्तर दिशा की लपटें सुख, शांति और सौभाग्य को बताती है।

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