उत्तराखंड में श्रद्धापूर्वक मनाया जा रहा बसंत पंचमी का पर्व, जानिए क्या है मान्यता
उत्तराखंड में बसंत पंचमी का पर्व उत्साह के साथ मनाया जा रहा है। मंदिरों के साथ ही स्कूल स्कूल-कॉलेजों में मां सरस्वती की पूजा-अर्चना की जा रही है। साथ ही जगह-जगह कलश यात्राएं भी निकाली जा रही हैं। बसंत ऋतु का आगमन बसंत पंचमी के दिन होता है। मान्यता है कि इसी दिन देवी सरस्वती का जन्म भी हुआ था। हिंदू पंचांग के अनुसार बसंत पंचमी का पर्व हर साल माघ मास शुक्ल पक्ष की पंचमी को मनाया जाता है। इसबार शुभ मुहूर्त बुधवार सुबह 10 बजकर 45 मिनट पर शुरू हुआ, जो गुरुवार दोपहर एक बजकर 19 मिनट तक रहेगा।
बसंत पंचमी के पावन अवसर पर ऋषिकेश में नारायण भरत भगवान की भव्य डोली यात्रा श्री भरत मंदिर से निकाली गई। झंडा चौक स्थित श्री भरत मंदिर में विधिवत पूजा अर्चना के बाद भगवान की डोली यात्रा प्रारंभ हुई। इसमें संस्कृत महाविद्यालय के छात्रों के साथ भरत इंटर कॉलेज की छात्राएं कलश लेकर शामिल हुईं।
वहीं, लोक कलाकारों ने उत्तराखंड की गढ़ संस्कृति पर आधारित कार्यक्रम प्रस्तुत किए। मायाकुंड पुराना बदरीनाथ मार्ग से होते हुए डोली यात्रा त्रिवेणी घाट पहुंची। यहां भगवान भरत की डोली को गंगा स्नान कराया गया। इसके बाद नगर के मुख्य मार्गों से होती हुई डोली यात्रा पुन: मंदिर में संपन्न हुई। यात्रा मार्ग पर जगह-जगह श्रद्धालुओं ने डोली का पूजन किया।
डोली यात्रा में महंत अशोक प्रपंन्न शर्मा, वत्सल शर्मा, वरुण शर्मा, उत्तराखंड महिला आयोग की अध्यक्ष विजया बड़थ्वाल, महापौर अनीता ममगाईं, पूर्व पालिकाध्यक्ष दीप शर्मा, वचन पोखरियाल, कैप्टन डीडी तिवारी, डीबीपीएस रावत, धीरेंद्र जोशी, नरेंद्र जीत सिंह बिंद्रा सहित बड़ी संख्या में स्थानीय नागरिक शामिल हुए।
मंदिरों में जुटे श्रद्धालु
हरिद्वार जिले के रुड़की में भी बसंत पंचमी श्रद्धापूर्वक मनाई जा रही है। शहर के साकेत स्थित दुर्गा चौक मंदिर में बसंत पंचमी के मौके पर मां की विशेष आराधना श्रद्धालुओं की ओर से की जा रही है। इसके अलावा नहर किनारे स्थित लक्ष्मीनारायण मंदिर, रामनगर के राम मंदिर, सुभाष नगर के संतोषी माता मंदिर समेत अन्य मंदिरों में भी बसंत पंचमी पर पूजा-अर्चना की जा रही है।
इसलिए होती है सरस्वती की पूजा
मान्यता है कि सृष्टि की रचना के समय भगवान ब्रह्मा ने जीव-जंतुओं और मनुष्य योनि की रचना की, लेकिन उन्हें लगा कि कुछ कमी रह गई है। इस कारण चारों ओर सन्नाटा छाया रहता है। ब्रह्मा ने अपने कमंडल से जल छिड़का, जिससे चार हाथों वाली एक सुंदर स्त्री प्रकट हुई। उस स्त्री के एक हाथ में वीणा और दूसरा हाथ में वर मुद्रा और बाकि दोनों हाथों में पुस्तक और माला थी। ब्रह्मा ने देवी से वीणा बजाने का अनुरोध किया, जैसे ही देवी ने वीणा का मधुरनाद किया, संसार के समस्त जीव-जंतुओं को वाणी मिल गई। जल धारा कलकल करने लगी और हवा सरसराहट कर बहने लगी। तब ब्रह्मा ने उस देवी को वाणी की देवी सरस्वती कहा।
सरस्वती को बागीश्वरी, भगवती, शारदा, वीणा वादनी समेत कई नामों से पूजा जाता है। वो विद्या, बुद्धि और संगीत की देवी हैं। ब्रह्मा ने देवी सरस्वती की उत्पत्ति बसंत पंचमी के दिन ही की थी। इसलिए हर साल बसंत पंचमी के दिन देवी सरस्वती का जन्म दिन मनाया जाता है।
मां सरस्वती को करें प्रसन्न
-बसंत पंचमी के दिन विद्या की देवी सरस्वती की पूजा कर उन्हें फूल अर्पित किए जाते हैं।
-इस दिन वाद्य यंत्रों और किताबों की पूजा की जाती है।
-इस दिन छोटे बच्चों को पहली बार अक्षर ज्ञान कराया जाता है।
– बच्चों को किताबें भेंट करना भी शुभ माना जाता है।
-पीले रंग के कपड़े पहनना इस दिन का शुभ संकेत माना जाता है।
-इस दिन पीले चावल या पीले रंग का भोजन किया जाता है।