Lohri 2020: सरसों के खेत से लेकर घर के आंगन तक मनाया जा रहा है Lohri का जश्न

Lohri का त्यौहार उत्तर भारत के पंजाब और उसके आसपास के हिस्सों में बड़ी धूमधाम से मनाया जाता है। यह पर्व जब शीतलहर अपने चरम पर होती है, तब आता है। Lohri का पर्व विशेषकर पंजाब और उससे जुड़े आसपास के इलाकों में मनाया जाता है। इस दिन घर के आंगन में अग्नि जलाकर उसमें नया अनाज और दूसरी सामग्री समर्पित की जाती है। परंपरा के अनुसार देखा जाए तो Lohri प्रकृति से जुड़ा हुआ एक अनुपम त्यौहार है। इसको हरी-भरी वसुंधरा से जोड़कर देखा जाता है।

Lohri का त्यौहार हरियाली की चादर ओढ़े खेत और अनाज से लबरेज खलिहान को समर्पित है। Lohri फसल की कटाई से जुड़ा एक विशेष पर्व है। पंजाब में जब फसल पक जाती है तो उसकी पूजा करने और प्रकृति का आभार जताने के लिए के लिए इस त्यौहार को मनाया जाता है। Lohri के दिन नई फसल के आने का जश्न मनाया जाता है और घर के आंगन में Lohri प्रज्वलित की जाती है। जश्न का इजहार करते हुए लड़के आग के पास भांगड़ा करते हैं और लड़कियां और महिलाएं गिद्दा प्रस्तुत करती हैं। इस अवसर पर महिलाएं विशेष सोलह श्रंगार करती है।

अग्नि की पूजा कर इसमें तिल, गुड़, गजक, रेवड़ी और मूंगफली चढ़ाई जाती हैं। इस समय आग में गेहूं की फसल आ जाती है इसलिए अग्नि में गेहूं की बालियां विशेष तौर पर चढ़ाई जाती है। रात्रिभोज में मक्के की रोटी और सरसों का साग बनाया जाता है और रेवड़ी और मूंगफली मित्रों और रिश्तेदारों में बांटी जाती है। अग्नि के आसपास नव विवाहित जोड़ा आहुति देते हुए चक्कर लगाता है और सुखी वैवाहिक जीवन की प्रार्थना करता है।

पंजाब के आसपास के इलाकों में कहीं-कहीं पर लोहड़ी को तिलोड़ी भी कहा जाता है। पंजाब के रहवासियों में नई बहू और नवजात शिशु के लिए लोहड़ी का खास महत्व है। परिवारजन और उनके मिलने वाले सुखद भविष्य की कामना करते हैं। लोहड़ी के दिनसे शीतऋतु की विदाई भी होने लगती है। सरसों की फसल से भरे खेत पीले दिखाई देते हैं।

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