निर्भया मामले में सात साल बाद न्‍याय की घड़ी, पढ़ें फैसले की खास बातें

राष्ट्रीय राजधानी में 2012 के सनसनीखेज निर्भया सामूहिक दुष्कर्म व हत्याकांड में दिल्ली की एक अदालत ने आखिरकार मंगलवार को चारों दोषियों के खिलाफ डेथ वारंट जारी कर दिए। इसके मुताबिक, इन चारों को 22 जनवरी को सुबह 7 बजे तिहाड़ जेल में फांसी दी जाएगी। कोर्ट के आदेश के बाद निर्भया की मां आशा देवी ने संतोष जताते हुए कहा कि दोषियों को फांसी से लोगों का कानून में विश्वास बढ़ेगा। हालांकि कानून के जानकारों के मुताबिक, दोषियों के पास अभी भी राष्ट्रपति के समक्ष दया याचिका लगाने का विकल्प बचा है। यदि दया याचिका लगाई जाती है तो उसके निपटारे तक फांसी रुक जाएगी।

अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश सतीश कुमार अरोड़ा ने चारों दोषियों- मुकेश (32), पवन गुप्ता (25), विनय शर्मा (26) तथा अक्षय कुमार सिंह (31) के खिलाफ डेथ वारंट जारी किए। चारों दोषी तिहाड़ जेल से वीडियो कांफ्रेंसिंग के जरिए जज के सामने हाजिर हुए थे।

सुनवाई के दौरान अभियोजन पक्ष ने कोर्ट को बताया कि दोषियों की कोई भी याचिका किसी भी कोर्ट या राष्ट्रपति के पास अभी लंबित नहीं है। सुप्रीम कोर्ट भी सभी दोषियों की पुनर्विचार याचिका खारिज कर चुका है।

अभियोजन वकील ने डेथ वारंट जारी करने आग्रह करते हुए कहा, ‘डेथ वारंट जारी होने और उस पर अमल के बीच दोषी यदि क्यूरेटिव पिटिशन दाखिल करना चाहें तो वे ऐसा कर सकते हैं।”

वहीं, दो दोषियों- मुकेश और विनय के वकील ने कहा कि वे सुप्रीम कोर्ट में क्यूरेटिव पिटिशन दाखिल करने की प्रक्रिया में हैं।

लेकिन निर्भया के माता-पिता के वकील ने कोर्ट के बाहर पत्रकारों को बताया कि चूंकि पुनर्विचार याचिकाएं सर्कुलेशन में नहीं बल्कि पूरी सुनवाई के बाद खारिज की गई हैं, इसलिए इस मामले में क्यूरेटिव पिटिशन की गुंजाइश नहीं है।

मालूम हो कि इसके पहले कोर्ट ने तिहाड़ जेल के अधिकारियों को चारों दोषियों से यह जानने का निर्देश दिया था कि क्या वे अपनी फांसी की सजा के खिलाफ राष्ट्रपति के समक्ष दया याचिका दाखिल कर रहे हैं।

कोर्ट ने यह फैसला निर्भया के माता-पिता तथा अभियोजन (दिल्ली सरकार) की अर्जियों पर दिया है। इन अर्जियों में दोषियों के खिलाफ डेथ वारंट जारी करने की मांग की गई थी।

सुप्रीम कोर्ट ने 18 दिसंबर को अक्षय की अर्जी यह कहते हुए खारिज कर दी थी कि पुनर्विचार अर्जी अपील पर बार-बार सुनवाई के लिए नहीं होती और उसने कानूनी पहलुओं को ध्यान में रखकर ही मौत की सजा बरकरार रखी थी।

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