समुद्री मछली खाने वाले हो जाएं अलर्ट, आपके दिमाग की बत्ती जलाने वाली है ये रिपोर्ट
कहते हैं कि समंदर अपने पास कुछ नहीं रखता है, आप उसमें जो कुछ डालेंगे वह आपको वापस कर देगा. इतने सालों तक जो कचरा प्लास्टिक की शक्ल में हम समंदर को देते आये हैं अब आने वाले वक्त में उसकी कीमत हमें और हमारी आने वाली पीढ़ियों को ही चुकानी होगी. समुद्र को इंसान जहरीला कर रहा है और लौटकर वही जहर फिर से इंसानों तक पहुंच रहा है. ये खतरा कहीं दूर नहीं, बल्कि भारतीय तटों के 10 नॉटिकल मील दूरी तक के समुद्र में ही है. एक नहीं बल्कि, देश के दो-दो प्रीमियर इंस्टिट्यूट की रिसर्च में ये बात सामने आ गयी है.
समुद्र, हमेशा से मानव सभ्यता के लिए खाद्य का स्त्रोत रहा है. इससे मिलने वाला समुद्री फूड जिसमें मछली, प्रॉन्स आदि है जो भारत के तटीय इलाकों का चावल के साथ सबसे बड़ा स्टेपल डाइट है. भारत की कुल 7500 किलोमीटर लम्बी समुद्री सीमा है, जो भारत के 9 राज्यों और 4 केंद्र शासित प्रदेशों को छूती हैं. इससे अंदाजा लगाया जा सकता है कि कितना महत्त्व है समुद्री जीवों का खानपान में.
भाउचा धक्का में रोजाना 500 टन रोजाना मछलियों की बिक्री होती है. मुबई शहर के अंदर के चार मछली बन्दरगाहों पर तकरीबन 900 से 1200 टन मछली रोजाना आती है. कुल मिलाकर देखा जाय तो प्रति वर्ष मुबई में दो लाख टन मछली की खपत है. मुबई से ना केवल मछलियां लोकल बाजार में जाती हैं बल्कि देश विदेश के अलग-अलग हिस्सों में भी जाती हैं. मगर क्या आप जानते हैं कि यही स्वादिष्ट मछलियां जीवन के स्वाद को बेस्वाद कर रही हैं. क्योंकि मछलियों के साथ और एक चीज मुंबई के समुद्र में मिलती है और वह 408 टन का रोज़ाना वाला कचरा और प्लास्टिक. यानी अगर एक हज़ार टन औसत भी मान लें तो उसपर रोज़ाना 408 टन कचरा प्लास्टिक और दूसरे रूप मे समुद्र में डाला जाता है. देश के दो प्रीमियर रिसर्च इंस्टिट्यूट ‘ Central Institute of fisheries education’ और IIT Bombay अलग-अलग रिसर्च कंडक्ट की और जो findings आयी वो चौंकाने वाली थी.
मगर अब देश के दो प्रीमियर रिसर्च इंस्टिट्यूट ‘Central Institute of fisheries education’ और IIT Bombay के दो एक दूसरे से अलग-अलग रिसर्च कंडक्ट की और जो findings आयी वो चौंकाने वाली थी.
‘Central Institute of fisheries education’ की इस जांच के लिए तकरीबन 300 अलग-अलग प्रजातियों पर सैंपल इकट्ठा किए गए, जिनमें से 200 सैंपल क्रोकस फिश के हैं. यह रिसर्च मुंबई के कोस्टल एरिया के 10 नौटिकल माइल्स क्षेत्रफल में की गई हैं. रिपोर्ट की findings कहती है.
मुंबई के समुद्री सीमा के 10 नौटिकल माइल्स के अंतर्गत मिलने वाली मछलियों में माइक्रोप्लास्टिक के कण पाए गए हैं. इन माइक्रोप्लास्टिक का साइज 100 माइक्रोन्स से भी छोटा है. हर मछली में 0.8 माइक्रोप्लास्टिक पार्टिकल मौजूद पाए गए हैं. इसके मायने होते हैं कि हर 100 ग्राम के अंदर 80 माइक्रों प्लास्टिक पार्टिकल का मौजूद होना. माइक्रोप्लास्टिक के कण बेहद सूक्ष्म हैं, जिन्हें नार्मल आखों से देख पाना संभव नहीं है. जब ये मछलियां हमारा आहार बनती है तो यही माइक्रोप्लास्टिक मछलियों के जरिए मानव शरीर में चला जाता है. इन मछलियों को खाने से कैंसर समेत कई सारे और खतरनाक रोग हो सकते हैं.