हनीट्रैप कांड में बड़ा खुलासा, सामने आये दो खास कंपनियों के भी नाम
राज्य शासन ने मंगलवार रात पुलिस विभाग में बड़ी सर्जरी की है। इसके साथ ही बहुचर्चित हनी ट्रैप मामले की जांच के लिए 9 दिन पहले बनी एसआईटी में भी तीसरी बार बदलाव कर दिया गया है। हनी ट्रैप केस की जांच के लिए राज्य सरकार ने अब डीजी स्तर के सीनियर आईपीएस अधिकारी राजेंद्र कुमार को एसआईटी का जिम्मा सौंपा है। राजेंद्र कुमार 1985 बैच के आईपीएस अधिकारी हैं। उनसे पहले संजीव शमी इसके प्रमुख थे, जिन्हें बदलकर पुलिस भर्ती एवं एंटी नक्सल ऑपरेशन में भेजा गया है।
मध्यप्रदेश का हनीट्रैप मामला सुर्खियों में छाया है। इस मामले में आए दिन नए खुलासे हो रहे हैं। अब एक बड़ा खुलासा हुआ है जिसमें कॉलेज छात्राओं के इस्तेमाल किये जाने की बात सामने आ रही है।
मध्यवर्गीय परिवार की छात्राओं को बनाया जाता था निशाना
हनी ट्रैप की मुख्य आरोपी श्वेता विजय जैन ने पूछताछ में एसआईटी को बताया है कि मध्यवर्गीय परिवार से आने वाली 20 से अधिक छात्राओं को अफसरों के पास भेजा गया। श्वेता ने इस बात का भी खुलासा किया है कि हनी ट्रैप का मुख्य उद्देश्य सरकारी ठेके, एनजीओ को फंडिंग करवाना और वीआईपी लोगों को टारगेट करना था। श्वेता ने बताया कि कई बड़ी कंपनियों को ठेके दिलवाने में मदद की। इस काम में उसकी साथी रही आरती दयाल ने भी अहम भूमिका निभाई।
दिखावे के लिए बनी आईटी कंपनी
विश्वस्त सूत्रों के अनुसार, इस स्कैंडल की शुरुआत तब हुई जब एमपी की साइबर सेल और एसटीएफ का एक सीनियर आईपीएस हनीट्रैप में पकड़ी गई आरती दयाल के साथ संपर्क में आया। ये करीब एक साल पहले की बात है. उस समय प्रदेश में चुनाव चल रहे थे। 26 जुलाई 2019 को आरती ने श्वेता विजय जैन के साथ मिलकर 10 लाख रुपये की पूंजी से एक टेक्नोलॉजी कंपनी शुरू की।
इस नई कंपनी की एक पुरानी कंपनी के साथ पार्टनरशिप कराई गई। पुरानी कंपनी बेंगलुरु बेस्ड थीं और साइबर तकनीक के क्षेत्र में काम करती थी। इस कंपनी का मालिक भी अब मामले की जांच कर रही एजेंसियों की रडार पर है।
आरती और श्वेता विजय जैन की कंपनी का काम तो था साइबर सिक्योरिटी, साइबर फॉरेंसिक और मोबाइल सिक्योरिटी लेकिन हकीकत में यहां कुछ और ही होना था। पुरानी कंपनी से पार्टनरशिप का नतीजा ये हुआ कि इन नई कंपनी का दखल भोपाल में भदभदा रोड पर स्थित साइबर मुख्यालय तक हो गया। इस कंपनी के जरिए नेताओं और अफसरों के फोन व चैटिंग पर नजर रखी जाने लगी। चैटिंग, एसएमएस के साथ कॉल रिकॉर्ड किए गए।
अभी हाल ही में दिल्ली-एनसीआर के गाजियाबाद में साइबर सेल ने एक गेस्ट हाउस किराए पर लिया था। इस गेस्ट हाउस का किराया सरकारी पैसे से दिया जा रहा था। नियमानुसार, साइबर सेल के मुखिया को इसकी जानकारी सरकार और पुलिस विभाग के मुखिया को देनी थी लेकिन ऐसा नहीं किया गया. इस बात पर विवाद उठने पर गेस्ट हाउस भी खाली करा लिया गया।
‘मेरा प्यार’ और ‘पंछी’ कोड का हुआ इस्तेमाल
वही इस बीच बताते चले हनीट्रैप कांड में जो तस्वीर सामने आ रही है वो और भी चौंकाने वाली है. मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक पकड़ी गई महिलाओं के पास से एसआईटी (विशेष जांच दल) के हाथ एक डायरी लगी है, जिसमें शिकार बनाए गए लोगों से वसूली गई रकम और बकाया का तो ब्यौरा है ही, साथ ही उपयोग में लाए जाने वाले कोडवर्ड का भी जिक्र है. ‘मेरा प्यार’ और ‘पंछी’ इस गिरोह के प्रमुख कोडवर्ड थे। कई बार कोडवर्ड ‘वीआईपी’ का भी उपयोग किया गया।.
मीडिया सूत्रों के मुताबिक, हनीट्रैप मामले में पकड़ी गई पांच शातिर महिलाओं में से एक रिवेरा टाउन में रहती है, जिसके पास पुलिस को सौ वीडियो क्लिप और तस्वीरें तो मिली ही हैं, साथ ही एक डायरी भी सामने आई है। इस डायरी में बीते कई वर्षो का पूरा लेखा-जोखा है। डायरी में मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ से जुड़े कई नेताओं के नाम स्पष्ट तौर पर हैं और उनसे वसूली गई व बकाया रकम का भी जिक्र है। एजेंसी ने डायरी के इन पन्नों की पुष्टि नहीं की, लेकिन इसमें मध्य प्रदेश में जिम्मेदार पद पर रहे एक नेता का नाम है, जो अब दिल्ली में बड़ी जिम्मेदारी संभाल रहे हैं. इसके अलावा कई पूर्व मंत्रियों व पूर्व सांसदों के नाम हैं।
एसआईटी से जुड़े सूत्रों ने बताया कि ‘पंछी’ कोडवर्ड का इस्तेमाल उस व्यक्ति के लिए किया जाता था, जो बड़ा आसामी होता था और जिससे या तो बड़ी रकम ली जा चुकी होती थी या बकाया होती थी। इसके साथ ही गिरोह की सबसे कम उम्र की युवती के द्वारा जाल में फंसाए गए लोगों के लिए ‘मेरा प्यार’ कोडवर्ड को उपयोग में लाया जाता था। इसके अलावा कई बड़े नेताओं को ‘वीआईपी’ कोडवर्ड की श्रेणी में रखा जाता था।
30 करोड़ रुपये में बेचने की कोशिश
जानकारी के अनुसार, इन महिलाओं ने लोकसभा चुनाव के दौरान राजनेताओं से संपर्क कर वीडियो क्लिपिंग को 30 करोड़ रुपये में बेचने की कोशिश की थी, उसके बाद से ही कई राजनेता इन वीडियो क्लिपिंग को हासिल करने में लग गए थे. सौदेबाजी करने वाले गिरोहों और नेताओं के बीच हुई बातचीत में यह बात जाहिर हो गई थी कि इस काम में सॉफ्टवेयर इंजीनियरों का दल शामिल है। ये सॉफ्टवेयर इंजीनियर हैदराबाद और बेंगलुरू के रहने वाले हैं। लोकसभा चुनाव के बाद से ही राजनेता सॉफ्टवेयर टीम के सदस्यों की तलाश में जुट गए थे और उन्होंने अपनी कोशिशों से सॉफ्टवेयर टीम के सदस्यों तक पहुंच बना ली थी।
उसके बाद बड़ी संख्या में वीडियो क्लिपिंग हासिल कर ली थी। इंदौर की वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक और एसआईटी टीम की सदस्य रुचि वर्धन मिश्र भी यह स्वीकार कर चुकी हैं कि इन महिलाओं ने कई लोगों के साथ अंतरंग वीडियो बनाए थे और उसको लेकर सौदेबाजी भी की थी। पूछताछ में यह भी पता चला है कि आरोपी महिलाएं चश्मे और लिपिस्टिक की डिब्बी में कैमरा लगाकर सारे घटनाक्रम को रिकार्ड कर लेती थीं और बाद में उसे अपने सॉफ्टवेयर टीम के पास भेज देती थीं।