गुरु गोबिंद सिंह जी के ये 5 अनमोल उपदेश

सिख धर्म में गुरु गोबिंद सिंह जी की जयंती विशेष महत्व रखती है। गुरु गोबिंद सिंह जी सिख धर्म के 10वें सिख गुरु थे, जिन्होंने खालसा पंथ की स्थापना की थी। साथ ही उन्होंने खालसा पंथ की रक्षा के लिए मुगलों से 14 बार युद्ध भी किया था। इस बार शनिवार, 27 दिसंबर 2025 को गुरु गोबिंद सिंह जयंती मनाई जा रही है। ऐसे में चलिए जानते है उनके कुछ प्रमुख वचन और उपदेश।

गुरु गोबिंद सिंह जी के उपदेश –
साच कहों सुन लेह सभी, जिन प्रेम कियो तिन ही प्रभ पायो”

गुरु गोबिंद सिंह जी के इस कथन का अर्थ है कि मैं सच कहता हूं, सब सुन लो, जिन्होंने प्रेम किया है, उन्होंने ही प्रभु को पाया है। इसमें वह बताते हैं कि ईश्वर की प्राप्ति केवल उन्हीं लोगों को होती है, जो सच्चा प्रेम करता है।

मानस की जात सबै एकै पहचानबो”

इसका अर्थ है कि समस्त मानव जाति को एक ही पहचानो। अर्थात मनुष्य की सारी जातियां एक ही हैं, सबको एक समान मानना चाहिए।

चूं कार अज हमह हीलते दर गुजश्त, हलाल अस्त बुरदन ब शमशीर दस्त”

गुरु गोबिंद सिंह जी कहते हैं कि जब सभी शांतिपूर्ण उपाय विफल हो जाएं, तब न्याय के लिए तलवार उठाना वैध है। अर्थात संघर्ष के दौरान जब धर्म और न्याय के लिए शांतिपूर्ण तरीके काम न आएं, तभी व्यक्ति को विद्रोह का सहारा लेना चाहिए।

“देहि शिवा बरु मोहि इहै, सुभ करमन ते कभुं न टरों।”

इसमें गुरु गोबिंद सिंह जी कहते हैं कि हे ईश्वर, मुझे यह वरदान दें कि मैं कभी भी शुभ कर्म करने से पीछे न हटूं।

“सवा लाख से एक लड़ाऊं, चिड़ियन ते मैं बाज तुड़ाऊं, तबै गुरु गोबिंद सिंह नाम कहाऊं

गुरु गोबिंद सिंह जी की ये पंक्तियां उस अमर शौर्य और बलिदान का को दर्शाती हैं, जब सिख वीरों ने अपने सिर कटवा लिए, लेकिन विदेशी आक्रांताओं के सामने घुटने नहीं टेके। यह पंक्ति आज भी लोगों में शौर्य भरने का काम करती है।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Back to top button

Adblock Detected

Please consider supporting us by disabling your ad blocker