उत्तर प्रदेश में 11 नदियों में खुलेंगे जल मार्ग के नए दरवाजे

प्रदेश में जलमार्ग आधारित परिवहन और पर्यटन को नई दिशा देने की तैयारी शुरू हो गई है। देश के 111 राष्ट्रीय जलमार्गों में से उत्तर प्रदेश की 11 नदियों में जलमार्ग के नए रास्ते खोले जा रहे हैं। इसमें गंगा, यमुना, घाघरा, सरयू, गंडक, अस्सी, बेतवा, चंबल, गोमती, वरुणा और कर्मनाशा सहित 11 नदियों में राष्ट्रीय जलमार्ग चिह्नित हैं।
मंगलवार को राजधानी के होटल रेनेसा में उत्तर प्रदेश अंतर्देशीय जलमार्ग प्राधिकरण की पहली बैठक हुई, जिसमें विशेषज्ञों ने जल परिवहन की संभावनाओं, चुनौतियों और समाधान पर विस्तार से चर्चा की।
प्रदेश में फिलहाल वाराणसी से हल्दिया तक 1620 किलोमीटर लंबे गंगा मार्ग पर जल परिवहन संचालित है। इसके अलावा 761 किलोमीटर रूट को विकसित किया जा रहा है, जिसमें गंगा, यमुना, सरयू और गंडक नदियों पर जलमार्ग का काम चल रहा है।
प्राधिकरण की ओर से वाराणसी (गंगा) और मथुरा (यमुना) में जल पर्यटन की शुरुआत भी की जा चुकी है। भारतीय अंतर्देशीय जलमार्ग प्राधिकरण के अध्यक्ष सुनील पालीवाल ने बताया कि पिछले एक दशक में जलमार्ग नेटवर्क में तेज विस्तार हुआ है। 2014 से पहले देश में केवल पांच जलमार्ग विकसित थे, जबकि अब 111 जलमार्गों पर काम पूरा हो चुका है।
एनडब्ल्यू-1 यानी गंगा जलमार्ग उत्तर प्रदेश के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है और इसके विकास के लिए केंद्र तथा राज्य को मिलकर काम करना होगा। प्राधिकरण के पूर्व सचिव व चेयरमैन टीके रामचंद्रन ने बताया कि असम और बंगाल में जलमार्ग पर बहुत काम हुआ है। वहां पर नदियों को पर्याप्त गहराई दी गई है।
लखनऊ के वरिष्ठ रेल प्रबंधक रजनीश श्रीवास्तव ने बताया कि जलमार्ग को सड़क और रेल से जोड़कर मल्टी माडल कार्गो नेटवर्क विकसित किया जा रहा है। इससे माल ढुलाई की लागत कम होगी। वाराणसी से कोलकाता तक माल भेजना सस्ता होगा और कानपुर-उन्नाव की फैक्ट्रियों के उत्पाद भी कम लागत में गंतव्य तक पहुंच सकेंगे।
वहीं, महानिदेशक पर्यटन राजेश कुमार ने कहा कि राज्य पर्यटन नीति के तहत फ्लोटिंग रेस्टोरेंट में निवेश करने वालों को 25 प्रतिशत की छूट मिलेगी। बैठक में इस पर भी चर्चा हुई कि वर्ष 2047 तक भारी माल की लंबी दूरी तक ढुलाई जलमार्गों के माध्यम से आसान हो जाएगी, जिससे लाजिस्टिक लागत घटेगी और सड़क-रेल नेटवर्क पर दबाव कम होगा।
नदी तटों पर लाजिस्टिक हब, वेयरहाउस, कोल्ड स्टोरेज, वाटर वे टर्मिनल और इनलैंड पोर्ट विकसित किए जाएंगे। रिवर क्रूज़, हाउसबोट, वाटर टैक्सी और रोपैक्स सेवाओं के विस्तार से काशी, प्रयागराज और अयोध्या जैसे धार्मिक शहर सीधे जलमार्ग से जुड़ेंगे। इससे घरेलू और विदेशी पर्यटन बढ़ेगा और रोजगार के नए अवसर पैदा होंगे।
बैठक में मिले सुझावों के आधार पर अगले चरण के लिए एजेंडा तैयार किया जाएगा। इन योजनाओं के धरातल पर आते ही प्रदेश आने वाले वर्षों में जलमार्ग आधारित परिवहन, पर्यटन और व्यापार का बड़ा केंद्र बनकर उभरेगा। बैठक में अपर मुख्य सचिव अर्चना अग्रवाल, परिवहन आयुक्त किंजल सिंह सहित अन्य विभागीय अधिकारी उपस्थित रहे।
पर्यावरण को प्रदूषण से मुक्त करने का बेहतर विकल्प
परिवहन मंत्री दयाशंकर सिंह ने कहा कि जल परिवहन पर्यावरण को प्रदूषण से मुक्त रखने का बेहतर विकल्प है। प्रदेश की 11 नदियों के अलावा बलिया का सूराहा ताल और गोरखपुर का रामगढ़ ताल भी पर्यटन की दृष्टि से बेहद उपयोगी साबित हो सकते हैं।
फ्लोटिंग होटल, रेस्टोरेंट के माध्यम से भी पर्यटन को बढ़ावा मिल सकता है। गंगा, यमुना और घाघरा को व्यापारी माल ढुलाई, यात्री परिवहन और पर्यटन के लिए पूरी तरह अनुकूल बनाने की योजना है। उन्होंने विचारकों से आग्रह किया कि व्यक्तिगत रुचि लेकर इस दिशा में कदम बढ़ाना चाहिए।
गोमती में चल सकती है वाटर मेट्रो
प्रयागराज की मंडलायुक्त सौम्या अग्रवाल ने बैठक में बताया कि गंगा नदी के प्रयागराज से बलिया तक का जलमार्ग सांस्कृतिक और आध्यात्मिक दृष्टि से महत्वपूर्ण है, मीरजापुर में अगस्त से अक्टूबर तक ही पर्याप्त जलस्तर रहता है। इसके बाद पानी कम होने और बीच में कई पुल भी जलमार्ग में चुनौती बनते हैं।
लखनऊ के मंडलायुक्त विजय विश्वास पंत ने बताया कि गोमती नदी के किनारे घनी आबादी है, ऐसे में यहां वाटर मेट्रो चलाई जा सकती है। नैमिषारण्य को भी इस जलमार्ग से जोड़ा जा सकता है।





