केंद्रीय समिति की सिफारिश- हरित अस्पतालों के लिए महानगरों से आगे ले जानी होगी पहल

केंद्र सरकार की एक समिति ने अपनी सिफारिश में कहा है कि हरित अस्पतालों के लिए की गई पहल महानगरों से आगे ले जानी होगी। इस संबंध में अब केंद्रीय स्वास्थ्य महानिदेशालय ने आदेश जारी कर दिया है। विस्तार से जानने के लिए पढ़िए पूरी खबर

भारत के अस्पतालों को हरित ऊर्जा से जोड़ने के लिए केंद्रीय टास्क फोर्स ने सिफारिश में कहा है कि सरकार की इस पहल को महानगरों से आगे लेकर जाना होगा। टास्क फोर्स के मुताबिक, भारत के अस्पतालों को अब नया हरित स्वरूप देने की जरूरत है जिससे न सिर्फ कम खर्च होगा बल्कि सेहत पर ज्यादा ध्यान और स्वच्छ भविष्य होगा। हमें इनके ऐसे स्वरूप बनाने हैं जहां इलाज के साथ स्वच्छ ऊर्जा का भरोसा मिले। अस्पतालों में सौर पैनल से यह रास्ता रोशन हो सकेगा।

नई दिल्ली स्थित राष्ट्रीय रोग नियंत्रण केंद्र (एनसीडीसी) के वरिष्ठ वैज्ञानिक और टास्क फोर्स के सदस्य डॉ. आकाश श्रीवास्तव का कहना है कि यह बदलाव सिर्फ तकनीक से नहीं बल्कि नीति, वित्त और प्रशिक्षण तीनों स्तर पर काम करने से होगा। उन्होंने कहा कि हरित अस्पताल मॉडल को सिर्फ दिल्ली, मुंबई या बंगलूरु जैसे महानगरों तक सीमित नहीं रहना चाहिए। छोटे शहरों और कस्बों तक इसे ले जाना होगा।

टास्क फोर्स की सिफारिशों को लेकर सोमवार को स्वास्थ्य महानिदेशालय ने राज्यों के लिए फिर से आदेश जारी करते हुए कहा है कि ग्रामीण अस्पतालों में पुराने उपकरणों को बदलते हुए नए उपकरण सौर ऊर्जा से संचालित होने चाहिए। इसमें एलईडी लाइटें और एसी की भूमिका काफी अहम है क्योंकि सबसे ज्यादा बिजली खपत इन पर होती है। इसके अलावा नए अस्पताल खासकर आयुष्मान आरोग्य मंदिर के लिए ऊर्जा संरक्षण भवन संहिता (ईसीबीसी) नियमों का पालन करना अनिवार्य है। सभी स्वास्थ्य केंद्रों की छतों पर सौर पैनल और हाइब्रिड पावर सिस्टम की स्थापना जल्द से जल्द होनी चाहिए।

निदेशक डॉ. शाह बोले- सौर ऊर्जा अपनाने से होगा दोहरा फायदा
नई दिल्ली स्थित राष्ट्रीय स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण संस्थान (एनआईएचएफडब्ल्यू) के निदेशक डॉ. धीरज शाह के कहा, मेडिकल कॉलेजों और अस्पतालों में सौर ऊर्जा अपनाने से दोहरा फायदा होगा। सबसे पहले बिजली का खर्च घटेगा, जिससे संसाधनों का उपयोग बेहतर तरीके से हो सकेगा।

दूसरी ओर कार्बन फुटप्रिंट कम होगा जिससे अस्पताल ग्रीन कैंपस का उदाहरण बनेंगे। उन्होंने कहा कि अगर पांच बर्षों में सभी सरकारी मेडिकल कॉलेज कम से कम 30% बिजली जरूरत सौर ऊर्जा से पूरी करने लगें, तो यह स्वास्थ्य क्षेत्र से कार्बन उत्सर्जन कम करने की दिशा में एक बड़ी उपलब्धि होगी।

65% बिजली खर्च सिर्फ रोशनी और एसी पर
केंद्रीय विद्युत प्राधिकरण (सीईए) के आंकड़े बताते हैं कि औसतन एक बिस्तर पर हर महीने 200 से 300 यूनिट बिजली खर्च होती है। यानी 30 बिस्तरों वाले किसी अस्पताल की मासिक खपत छह से नौ हजार युनिट तक पहुंच जाती है। इसमें से करीब 65 प्रतिशत बिजली सिर्फ रोशनी, एसी, वेंटिलेशन और पानी गरम-ठंडा करने पर चली जाती है। हालांकि स्वास्थ्य महानिदेशालय ने राज्यों से कहा है कि अगर सरकारी और निजी अस्पताल ऊर्जा दक्षता की तकनीकें अपनाएं और नवीकरणीय ऊर्जा की ओर बढ़े तो भारत पर्यावरण संरक्षण में भी मिसाल पेश कर सकता है।

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