मॉस्को के सहारे कितनी मजबूत हो पाएगी भारत-रूस-चीन की तिकड़ी?

प्रधानमंत्री पहले जापान जा रहे हैं। जापान भारत में अपना निवेश बढ़ाने, कारोबारी रिश्ते को ऊंचाई पर ले जाने में कोताही नहीं करेगा। ट्रंप के टैरिफ वार के दौर में वह खुलकर भारत का साथ देगा। इसके बाद प्रधानमंत्री चीन की यात्रा पर रहेंगे।

इसी महीने के अंत (29 अगस्त से 1 सितंबर) में प्रधानमंत्री जापान और चीन की यात्रा करेंगे। जापान की यात्रा सुखद रहने के पूरे आसार है, लेकिन चीन यात्रा को सफल बनाने की तैयारी जोरों पर है। चीन के राजदूत का बयान सामने आया है। बहुत अच्छा है। समझा जा रहा है कि प्रधानमंत्री की यात्रा के दौरान शी जिनपिंग बहुत अच्छा-अच्छा संवाद करेंगे। सुंदर शब्द सुनने को मिलेंगे, लेकिन एक सवाल भी है कि भारत-चीन के बीच में भरोसे का संकट कैसे दूर होगा?

सामरिक और रणनीतिक मामलों के जानकार ब्रह्म चेलानी अंतरराष्ट्रीय मामलों में बुहत संवेदनशील हैं। सोशल मीडिया पर सक्रिय हैं और भारत के सामने आने वाली चुनौतियों की तरफ खुलकर इशारा कर रहे हैं। विदेश मामलों के जानकार वरिष्ठ पत्रकार रंजीत कुमार भी मानते हैं कि भारत और रूस का रिश्ता इस समय विश्वसनीय दौर में चल रहा है, लेकिन अमेरिका की नाराजगी बढ़ती जा रही है। राष्ट्रपति डोनाल्ड जे ट्रंप के आर्थिक सलाहकार जिस तरह से भारत को कोस रहे हैं, चिंता का विषय है। संयुक्त राष्ट्रमहासभा की भी बैठक होनी है। भारत इसके बाबत अमेरिकी प्रशासन के संपर्क में है और समझा जा रहा है कि प्रधानमंत्री मोदी और डोनाल्ड ट्रंप की भेंट के प्रयास हो रहे हैं। रंजीत कुमार कहते हैं कि यदि ऐसा कुछ हो पाया तो प्रधानमंत्री संयुक्त राष्ट्र महासभा में शिरकत कर सकते हैं, लेकिन यदि ट्रंप से मिलने का समय तय न हो सका तो शायद वह जाने से बचें।

चीन से किस बुनियाद पर मजबूत होगा रिश्ता?
राष्ट्रपति ट्रंप जब टैरिफ पर धमकता रहे थे तो पूर्व विदेश सचिव शशांक ने कहा था कि भारत को रूस-चीन के साथ अपने आरआईसी और ब्रिक्स फोरम को मजबूती देनी चाहिए। हुआ भी यही। भारत ने रूस के सहयोग से चीन के साथ संवाद में सफलता पाई है। राष्ट्रपति शी जिनपिंग के निमंत्रण पर एससीओ शिखर सम्मेलन में प्रधानमंत्री हिस्सा लेने जाएंगे। शी जिनपिंग से द्विपक्षीय, क्षेत्रीय, अंतरराष्ट्रीय मुद्दे पर चर्चा पर भी करेंगे। 2024 में प्रधानमंत्री ने एससीओ के अस्ताना में हुए शिखर सम्मेलन में हिस्सा लेना उचित नहीं समझा था। इससे पहले प्रधानमंत्री 9 जून 2018 को चीन गए थे। गलवां घाटी में भारत और चीन के सेनिकों के खूनी संघर्ष के बाद हालात तनाव पूर्ण हुए थे और अब सात साल बाद प्रधानमंत्री संबंधों को मधुर बनाने जा रहे हैं, लेकिन एक सवाल मन में कौंध रहा है। चीन की पाकिस्तान से करीबी और ग्वादर से पाक अधिकृत कश्मीर होते हुए चीन तक जिनपिंग का ड्रीम प्रोजेक्ट से कई शंकाएं पैदा होती हैं। अप्रैल 2020 से लद्दाख में चीन की सेना के वास्तविक नियंत्रण रेखा को पार करने के बाद दोनों देशों के रिश्ते तनाव पूर्ण दौरे से गुजरे हैं। भारत ने टिकटॉक समेत चीन की तमाम कंपनियों को कारोबार करने से रोक दिया था। चीनी सामान का बहिष्कार और एक दूसरे को नश्तर से चुभते तीर चले थे। चीन ने यूरिया, रेअर अर्थ जैसे सामान की आपूर्ति पर रोक लगा दी थी। चीन के रणनीतिकारों के दिमाग में यह बात घर करके बैठी है कि अमेरिका जैसे पश्चिमी देश चीन की नाक पकड़ने के लिए भारत को महत्व देते हैं। ऐसे में बड़ा सवाल यही है कि भारत का चीन से रिश्ता किस भरोसा की बुनियाद पर आगे बढ़ेगा? क्या अमेरिका से खराब होते रिश्ते का चीन फायदा उठाकर भारत को दबाने की कोशिश नहीं करेगा?

मत भूलिए कि पाकिस्तान, चीन की जरूरत है…
पाकिस्तान का ग्वादर बंदरगाह उसे मध्य एशिया से कनेक्टिविटी प्रदान करता है। पाकिस्तान से अफगानिस्तान होकर सीधा मध्य एशिया तक कारोबार संभव है। ऊर्जा सुरक्षा से लेकर कारोबार की दृष्टि से चीन की निगाह इस क्षेत्र पर रहती है। ईरान के चाबहार बंदरगाह तक वह भारी निवेश करना चाहता है। देखा जाए तो पाकिस्तान की जमीन को सीढ़ी की तरह इस्तेमाल करके चीन मध्य एशिया तक समुद्र, सड़क, हवाई मार्ग से अपना प्रभुत्व बनाने की रणनीति पर काम कर रहा है। उसके लिए फायदे की बात है कि पाकिस्तान 70 प्रतिशत से अधिक रक्षा क्षेत्र के साजो-सामान के लिए चीन पर निर्भर है। इसलिए सवाल और आशंकाएं बहुत हैं।

29 अगस्त से 1 सितंबर तक बातें बहुत मीठी मीठी होंगी
जापान भारत का पुराना, विश्वसनीय सहयोगी है। प्रधानमंत्री पहले जापान जा रहे हैं। यह सराहनीय है। वहां से अच्छी खबर आएगी। जापान भारत में अपना निवेश बढ़ाने, कारोबारी रिश्ते को ऊंचाई पर ले जाने में कोताही नहीं करेगा। ट्रंप के टैरिफ वार के दौर में वह खुलकर भारत का साथ देगा। इसके बाद प्रधानमंत्री चीन की यात्रा पर रहेंगे। जिस तरह से विदेश मंत्री एस जयशंकर चीन गए थे। विदेश मंत्री और एनएसए भारत आए थे और विदेश मंत्री मॉस्को यात्रा कर आए हैं, उससे एक संदेश साफ निकल रहा है। चीन में मीठी-मीठी, अच्छी-अच्छी बहुत होंगी। शी जिनपिंग गर्मजोशी दिखाएंगे और प्रधानमंत्री मोदी ऐसे अवसर पर कभी नहीं चूकते, लेकिन इसके आगे का रास्ता अभी सामरिक, रणनीतिक और कूटनीतिक जानकारों को कम समझ में आ रहा है। इसका नतीजा आने में समय लगेगा। इसमें एक बारीक लाइन और है। विदेश सेवा के पूर्व अधिकारी एसके शर्मा कहते हैं कि बहुत जल्दी नतीजे पर नहीं आना चाहिए। शर्मा कहते हैं कि मुझे यह कहने में कोई संकोच नहीं है कि कुछ नादानियां हुई हैं। कुछ वैश्विक भू-राजनीति बदली है। ऐसे समय में भारत को जटिलताओं से बाहर आने के लिए कड़ी मेहनत करनी होगी।

तीन राष्ट्राध्यक्ष इस समय अंतरराष्ट्रीय ड्राइविंग सीट पर हैं
तीन राष्ट्राध्यक्ष नेताओं के बीच में अंतरराष्ट्रीय घड़ी आगे बढ़ रही है। यूरोप हमेशा की तरह अमेरिका के साथ अपनी वेवलेंथ तय कर रहा है। राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप एक नए मिशन मोड में हैं। वह क्वॉड की भाषा नहीं बोल रहे हैं। भारत को खास तौर से टारगेट पर ले रहे हैं। राष्ट्रपति पुतिन भी ड्राइविंग सीट पर बैठे हैं। इस समय भारत को खूब तवज्जो दे रहे हैं। अंतरराष्ट्रीय स्तर पर करवट ले रही स्थितियों ने चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग को महत्वपूर्ण बना दिया है। ऐसे में भारत के पक्ष में कोई भी स्पष्ट दिशा तीनों राष्ट्राध्यक्षों के साथ बैठक के बाद ही निकलने के आसार हैं। देखना है आने वाला समय कैसा संकेत करता है।

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