ऊर्जा प्रदान करती हैं नवदुर्गा, नवरात्र के पर्व से मिलती है ये सीख

इस साल चैत्र नवरात्र की शुरुआत 31 मार्च, सोमवार के दिन से होने जा रही है। इस पर कथावाचर मोरारी बापू जी का कहना है कि नव संवत्सर का आरंभ नवरात्र से होता है, देवी पूजा से। यह पूजा एक मनोकामना है कि पहली संतान पुत्री के रूप में जन्म ले। परिवार में कन्या का जन्म हो तो उत्सव मनाओ। पर्वतराज हिमालय के घर पार्वती के जन्म का हुआ तो उत्सव मनाया गया। कन्या जगत जननी है। हिमालय के यहां पुत्री ने जन्म लिया, तो हिमालय की समृद्धि में वृद्धि हुई।

नव संवत्सर पर लें ये संकल्प

पुत्री के जन्म पर आपकी समृद्धि में भी वृद्धि होगी। देवी के चरण-कमल की पूजा कर सुखी होना है तो दहेज की प्रथा में नहीं पड़ना है। हम सबको समाज में नारी का सम्मान करना होगा। नवदुर्गा को मैं इस प्रकार देखता हूं कि दुर्गा हमें ऊर्जा प्रदान करती है। नव संवत्सर पर हम संकल्प लें कि इस ऊर्जा से हमें अपनी खोज करनी है, दूसरों से प्रेम करना है और जहां तक हो सके, दूसरों की सेवा करनी है। यदि यह हम कर सकते हैं तो नवरात्र में नव संवत्सर के अवसर पर देवी से यह ऊर्जा प्राप्त करें।

हनुमान जी की भी करें आराधना

हम शक्ति की आराधना इसलिए करें कि हमारे में शक्तिमान प्रकट हो। दबा हुआ तो वह है ही। कोई घट खाली नहीं है, जिसमें वह ना हो। विश्व मंगल के लिए, विश्व सुख के लिए वह उजागर हो। नव वर्ष पर हनुमान चरणों में, परम तत्व के चरणों में प्रार्थना करता हूं कि सबका विकास हो और सबको विश्राम मिले। विकास हो और विश्राम न मिले तो ऐसा विकास दो कौड़ी का भी नहीं है। नव संवत्सर के अवसर पर विशेष रूप से कहूंगा कि आदमी को विश्राम चाहिए।

क्या कहते हैं मत

विकास का मार्ग विश्राम की मंजिल तक ले जाए, सबके लिए यही प्रार्थना करता हूं। जानकी जी जनकपुर के उपवन में मां भवानी की स्तुति करती हैं- नहिं तव आदि मध्य अवसाना। अमित प्रभाउ बेदु नहिं जाना।। हे मां, तुझसे पहले कोई नहीं था। तेरा ना आदि है, ना मध्य है, ना अंत है। आपके असीम प्रभाव को वेद भी नहीं जानते। ईश्वर और अंबा दो नहीं हैं। एक मत है कि प्रकृति और परमेश्वर भिन्न हैं और दूसरा मत है कि प्रकृति और परमेश्वर दो नहीं हैं। तत्वतः एक ही हैं।

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