मोबाइल टॉर्च की रोशनी में गर्भवती महिला की ऑपरेशन से मौत, HC की रडार पर 30 मैटरनिटी होम
मोबाइल टॉर्च की रोशनी में ऑपरेशन के दौरान गर्भवती महिला की मौत के मामले में बॉम्बे हाईकोर्ट (HC) ने बड़ा कदम उठाया है। हाईकोर्ट ने बृहन्मुंबई नगर निगम (BMC) द्वारा संचालित 30 प्रसूति गृहों (मैटरनिटी होम) के सोशल ऑडिट के लिए एक आठ सदस्यीय समिति गठित की है। आरोप है कि प्रसूति गृह में पर्याप्त सुविधाएं न होने के चलते मोबाइल फ्लैश लाइट की रोशनी में सर्जरी की गई थी। इसके बाद अब हाईकोर्ट ने इन मैटरनिटी होम की जांच कराने के निर्देश दिए हैं।
न्यायमूर्ति रेवती मोहिते डेरे और नील गोखले की खंडपीठ ने याचिकाकर्ता द्वारा उठाए गए मुद्दों को देखते हुए यह समिति गठित की। समिति के आठ सदस्यों में से छह को याचिकाकर्ता की सिफारिश पर नियुक्त किया गया, जबकि दो सदस्य बीएमसी की सिफारिश पर शामिल किए गए हैं। इनमें से एक सदस्य जे.जे. अस्पताल से और दूसरा नायर अस्पताल से है।
क्या है पूरा मामला
बार एंड बेंच की रिपोर्ट के मुताबिक, यह याचिका मृतका के पति खुर्शुद्दीन अंसारी ने दायर की थी, जिसमें उन्होंने अपनी पत्नी शाहिदुन्निसा की मौत के लिए जिम्मेदार लोगों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई और उचित मुआवजे की मांग की थी। याचिका में कहा गया कि 29 अप्रैल को शाहिदुन्निसा को प्रसव पीड़ा शुरू हुई और उन्हें सुबह 8:20 बजे सुषमा स्वराज प्रसूति गृह लाया गया। हालांकि, उन्हें रात 10:30 बजे तक ऑपरेशन थियेटर में नहीं ले जाया गया। इस दौरान अस्पताल में कई बार बिजली गुल हो गई और इनवर्टर या जनरेटर उपलब्ध नहीं थे। बच्चे का जन्म हुआ लेकिन वह रोया नहीं और कुछ ही देर बाद उसे मृत घोषित कर दिया गया।
शाहिदुन्निसा की हालत गंभीर होने पर उन्हें सायन अस्पताल रेफर किया गया, जहां रात 1:30 बजे डॉक्टरों ने उन्हें मृत घोषित कर दिया। अंसारी ने दावा किया कि प्रसूति गृह में पर्याप्त सुविधाओं का अभाव था और बिजली कटौती के कारण डॉक्टरों को मोबाइल टॉर्च की रोशनी में सर्जरी करनी पड़ी। उनकी याचिका में कहा गया है कि गर्भावस्था के दौरान, यह नियमित रूप से दर्ज किया गया था कि मां और भ्रूण दोनों स्वस्थ थे।
चिकित्सा रिकॉर्ड न मिलने की शिकायत
अंसारी ने 22 मई को सुषमा स्वराज प्रसूति गृह और सायन अस्पताल दोनों से मेडिकल रिकॉर्ड मांगे, लेकिन उनके अनुरोधों को बार-बार नजरअंदाज किया गया। याचिका में इस बात पर जोर दिया गया कि मेडिकल नैतिकता नियमों के अनुसार, अनुरोध के 72 घंटे के भीतर मेडिकल रिकॉर्ड उपलब्ध कराए जाने चाहिए।
याचिकाकर्ता ने मांग की है कि भांडुप पुलिस इस पूरे मामले की निष्पक्ष और समयबद्ध जांच करे और दोषियों के खिलाफ सख्त कार्रवाई की जाए। उन्होंने अपनी पत्नी और नवजात शिशु की मौत के लिए मुआवजे की भी मांग की है। इस घटना ने बीएमसी के अस्पतालों की दयनीय स्थिति को उजागर किया है। हाईकोर्ट द्वारा गठित समिति अब 30 प्रसूति गृहों की सामाजिक ऑडिट कर यह जांच करेगी कि इन अस्पतालों में बुनियादी सुविधाएं उपलब्ध हैं या नहीं।