24 गोताखोर पर पूरे जिले की जिम्मेदारी, तीन साल में 77 लोगों की डूबने से मौत

जिले भर में नदी, नाला,नहर, जलाशय, तालाब का जाल बिछा है, जो बारिश के दिनों में लबालब भर जाता है। किसानों के लिए सभी जलकर वरदान हैं तो कई लोगों के लिए शोक की वजह भी। हर साल नादानी, लापरवाही और असावधानी की वजह से पानी में डूबने से दर्जनों लोगों की मौत हो जाती है।

इस साल भी अब तक जिले में 22 लोगों की मौत पानी में डूब कर हो चुकी है। मृतकों में पांच बच्चियां व एक बच्चे भी शामिल थे। 18 सितंबर को भी करपी प्रखंड में पईन में डूबने से एक साथ दो सगी बहनों की मौत हो गई थी। पिछले माह इसी प्रखंड में नाला में ऑटो गिरने से एक ही परिवार के तीन बच्चों की मौत हो गई थी।

ऐसी घटनाओं से पीडित परिवारों की जिंदगी में गमों का सैलाब आ जाता है। इससे बचाव की जगह आश्रितों के जख्मों पर मुआवजे का मरहम लगाया जाता है। सरकार को हर साल आश्रितों के बीच एक करोड़ से अधिक अनुग्रह अनुदान राशि वितरण करनी पड़ रही है।

गोताखोर की नियुक्ति डेली बेसिक पर की गई

आपदा से हो रही मौत को कम करने के लिए आपदा प्रबंधन विभाग की ओर से जिले में 24 गोताखोर की तैनाती की गई हैं। लेकिन मौतों में एक प्रतिशत भी कमी नहीं आ रही है। तीन साल में 77 लोगों की मौत पानी में डूबने से हुई है।

जिले में गोताखोर की नियुक्ति डेली बेसिक पर की गई है, जिसे पटना की एसडीआरएफ की टीम की ओर से तैराकी व गोताखोरी का प्रशिक्षण दिया गया है, ताकि ये लोग अपने आसपास के इलाकों में नदी, तालाब, नहर, नाला में डूब रहे लोगों को बचा सकें।

इस वर्ष हादसे में कोई भी गोताखोर लोगों को डूबने से नहीं बचा पाए, केवल शव ही बाहर निकालते हैं। जिले में आपदा विभाग की ओर से युवाओं व स्कूली बच्चों को भी तैराकी सिखाई गई थी।

2023 में तीन कैंप आयोजित किये गये थे। अरवल, करपी, कुर्था में 200 युवाओं एवं 200 स्कूली बच्चों को तैराकी का प्रशिक्षण देकर विभाग की ओर से प्रमाण पत्र भी दिया गया था।

जब जरूरत होती है तब अंचल अधिकारी गोताखोरों को सूचना देते हैं। जितने दिन तक गोताखोरों से काम लिया जाता है उतने ही दिन का पैसा भुगतान किया जाता है। बड़ी घटना होने पर एसडीआरएफ की टीम पटना से बुलाई जाती है। अभी जिले में एसडीआरएफ की टीम नहीं है। तत्काल में स्थानीय गोताखोरों को ही बुलाया जाता है।-गोविंदा मिश्रा , जिला आपदा प्रबंधन पदाधिकारी

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