जमात-ए-इस्लामी बांग्लादेश से चीन बढ़ा रहा नज़दीकियां, पढ़ें पूरी खबर…
पड़ोसी देश बांग्लादेश में हाल ही में हुए राजनीतिक उथल-पुथल के बाद दक्षिण एशिया में भू-राजनीतिक परिदृश्य बदलता नजर आ रहा है। मोहम्मद यूनुस की अंतरिम सरकार ने जहां पाकिस्तान के साथ रिश्ते सुधारने के संकेत दिए हैं, वहीं चीन ने अब बांग्लादेश पर डोरे डालना शुरू कर दिए हैं। बांग्लादेश में चीन के राजदूत याओ वेन ने सोमवार को वहां की राजनीतिक पार्टी जमात-ए-इस्लामी के दफ्तर जाकर पार्टी प्रमुख शफीकुर रहमान से मुलाकात की है। चीन ने भले ही इसे शिष्टाचार मुलाकात बताया हो लेकिन यह मुलाकात इस मायने में अहम है क्योंकि मार्च 2010 में जमात के खिलाफ युद्ध अपराधों का मुकदमा शुरू होने के बाद पहली बार किसी राजनयिक ने ढाका स्थित जमात-ए-इस्लामी के दफ्तर का दौरा किया है।
पुलिस ने 2011 में जमात का दफ्तर सील कर दिया था लेकिन इस साल शेख हसीना सरकार के खिलाफ हुए छात्र विद्रोह और हसीना सरकार की बेदखली के बाद इसे फिर से खोल दिया गया है। सोमवार को चीनी राजदूत ने शफीकुर रहमान से मुलाकात के बाद उनकी पार्टी के बांग्लादेश की एक सुव्यवस्थित पार्टी करार दिया है। उन्होंने बांग्लादेश को एक खूबसूरत देश भी करार दिया। वेन ने कहा कि चीन बांग्लादेश के साथ मैत्रीपूर्ण संबंध चाहता है। दरअसल, शेख हसीना के शासनकाल में बांग्लादेश का झुकाव भारत की तरफ ज्यादा था, जबकि पाकिस्तान के साथ उसके रिश्ते बेहद तनावपूर्ण थे। हालांकि, 2014 से 2018 के बीच शेख हसीना के चीन के साथ भी अच्छे संबंध रहे हैं।
बांग्लादेश से नजदीकी क्यों बढ़ाना चाह रहा चीन
चीन बांग्लादेश की अंतरिम सरकार और जमात-ए-इस्लामी जैसे राजनीतिक दलों के साथ भागीदारी और द्विपक्षीय संबंध बढ़ाने पर जोर दे रहा है। शिक्षा, संस्कृति और विकास परियोजनाओं के मुद्दे पर चीन बांग्लादेश की मदद करना चाह रहा है। इसके पीछे मुख्य वजह बांग्लादेश की भौगोलिक अवस्थिति है। बांग्लादेश भारत से सटा हुआ देश है और उसकी दक्षिणी सीमा बंगाल की खाड़ी में मिलती है।
चीन जो अपने सामरिक और भौगोलिक विस्तारवादी नीति के लिए दक्षिण एशिया में बदनाम है, वह बांग्लादेश की आड़ में बंगाल की खाड़ी में अपनी रणनीतिक उपस्थिति और मजबूत करना चाहता है। मालदीव के जरिए पहले ही वह हिन्द महासागर में अपनी रणनीतिक मौजूदगी मजबूत कर चुका है। इसके अलावा चीन म्यांमार के साथ दोस्ती कर अपनी हित साध चुका है। म्यांमार के ग्रेट कोको द्वीप पर सैन्य अड्डा बना चुका है। यह मिलिट्री बेस भारत के अंडमान निकोबार द्वीप से मात्र 55 किमी की दूरी पर है। इसलिए, चीन की यह कोशिश है कि वह दक्षिण एशिया में अपने रणनीतिक हित बांग्लादेश के जरिए और आगे बढ़ा सके।
चीन न केवल दक्षिण एशिया में अपना मिलिट्री बेस स्थापित करना चाहता है बल्कि कोको द्वीप के नजदीक स्थित मलक्का स्ट्रेट की जरिए व्यापारिक मार्ग पर भी अपना प्रभुत्व जमाना चाहता है। यह दुनिया का सबसे व्यस्ततम व्यापारिक मार्ग है। प्रशांत महासागर और हिंद महासागर के बीच के जल-मार्ग में स्थित होने के कारण इसका अंतरराष्ट्रीय महत्व ज्यादा है। भारत के लिए यह घटनाक्रम चिंताजनक है क्योंकि बांग्लादेश ना केवल भारत से सटा देश है बल्कि दक्षिण एशिया की भू राजनीति में इसकी बड़ी भूमिका है। यही रणनीतिक स्थिति नई दिल्ली को ढाका का एक प्रमुख साझीदार बनाता है लेकिन चीन जमात-ए-इस्लामी जैसी पार्टी के साथ संबंधों को मजबूत करके भारत-बाग्लादेश के ऐतिहासिक संबंधों पर संदेह खड़ा करना चाहता है ताकि भारत के रिश्ते पूर्वी पड़ोसी के साथ कमजोर हो सकें और वह उसका फायदा उठा सके।