भगवान शिव को बेहद प्रिय माने जाते हैं ये फूल, सावन में जरूर करें अर्पित
22 जुलाई 2024 से सावन का महीना शुरू होने वाला है। सावन का महीना भगवान शिव को समर्पित माना जाता है। शिवजी को भोलेनाथ कहा जाता है, क्योंकि उन्हें प्रसन्न करना बेहद आसान होता है।
धार्मिक पुराणों और शास्त्रों में यह बताया गया है कि भगवान शिव का जलाभिषेक और रुद्राभिषेक करने से वे प्रसन्न हो जाते हैं और हर मनोकामना पूर्ण करते हैं। ऐसे में सावन के महीने में यदि एक लोटा जल भरकर भगवान शिव पर चढ़ाया जाए, तो कई प्रकार के लाभ प्राप्त होते हैं।
आज हम आपको भगवान शिव के पांच प्रिय फूलों के बारे में बताने जा रहे हैं। यदि आप सावन के महीने में इन्हें भोलेनाथ पर चढ़ते हैं, तो हमेशा उनकी कृपा आप पर बनी रहती है।
कनेर का फूल
हम सभी जानते हैं कि हर देवी-देवता को अलग-अलग प्रकार के पुष्प समर्पित होते हैं। इसी तरह भगवान शिव को कनेर का फूल भी चढ़ाया जाता है। कनेर का फूल तीन रंग का होता है – पीला, सफेद और लाल।
इन पुष्पों को चढ़ाने से शिवजी बहुत प्रसन्न होते हैं, लेकिन इस बात का ध्यान रखें कि प्रदोष और सोमवार छोड़कर ही इन फूलों को भगवान शिव पर अर्पित करें।
मदार का पुष्प
भगवान शिव को भांग-धतूरा भी बहुत प्रिय है। उनकी विशेष पूजा के समय मदार के पुष्प का उपयोग किया जाता है। मदार का पुष्प दो रंगों का खिलता है – एक नीला और दूसरा सफेद।
भगवान शिव को हमेशा सफेद मदार या आक के फूल चढ़ाए जाते हैं। माना जाता है कि भगवान शिव को मदार या आक के फूल चढ़ाने से मोक्ष की प्राप्ति होती है। साथ ही जीवन की सभी समस्याएं खत्म होने लगती हैं।
पारिजात का फूल
पारिजात का फूल भी भगवान शिव को प्रिय माना जाता है। कहा जाता है कि सावन के महीने में इस पुष्प को भगवान शिव पर चढ़ाने से वे बहुत प्रसन्न होते हैं। मान्यता है कि यह पुष्प श्री विष्णु के कृष्ण अवतार खुद स्वर्ग से धरती लेकर आए थे। यह पूरे साल में सिर्फ सर्दी के दिनों में ही खिलता है।
शमी के पत्ते
शमी के पत्ते का बहुत महत्व होता है। शमी का पत्ता 1000 बेलपत्र से ज्यादा बड़ा होता है, इसलिए इसे चढ़ाने से 1000 बेलपत्र के चढ़ाने जितना पुण्य फल मिलता है। सावन के महीने में शमी के पत्ते को विशेष रूप से भगवान शिव पर अर्पित करना चाहिए।
धतूरे का पुष्प
धतूरे का पुष्प भी भगवान शिव के पांच प्रिय पुष्पों में से एक माना जाता है। सोमवार और प्रदोष को छोड़कर इस पुष्प को कभी भी भगवान शिव पर चढ़ाया जा सकता है, लेकिन सावन में इसका महत्व और भी बढ़ जाता है।
कई पुराणों में इसकी उत्पत्ति को लेकर भी वर्णन किया गया है। बताया जाता है कि समुद्र मंथन से जो विष निकला था, उसे जब भगवान शिव ने ग्रहण किया था, तो उस विष को पीने के दौरान उनकी छाती से इस पुष्प की उत्पत्ति हुई थी।