भीमराव आंबेडकर की दीक्षाभूमि के विस्तार लिए जमीन चाहिए, HC पहुंच गया मामला, सरकार को नोटिस
संविधान निर्माता भीमराव आंबेडकर ने नागपुर में जिस स्थान पर बौद्ध मत की दीक्षा ली थी, उस स्थान को और विकसित करने के लिए हाई कोर्ट में अर्जी दाखिल हुई है। इस याचिका में मांग की गई है कि दीक्षाभूमि का विस्तार करना जरूरी है और वहां कुछ और निर्माण होना चाहिए। इस अर्जी पर बॉम्बे हाई कोर्ट ने राज्य सरकार, जिला प्रशासन, स्थानीय निकाय समेत तमाम एजेंसियों से जवाब मांगा है। याचिका में मांग की गई है कि दीक्षाभूमि के लिए कुछ और जमीन दी जाए ताकि वहां और निर्माण किया जा सके। याचिका में मांग की गई है कि दीक्षाभूमि को ऐसे स्थान के तौर पर विकसित किया जाए, जिससे दुनिया भर के पर्यटकों काध्यान आकर्षित हो।
भीमराव आंबेडकर ने 14 अक्टूबर, 1956 को नागपुर में बौद्ध धर्म अपना लिया था। उन्होंने दो दशक पहले ही मतांतरण की बात कही थी, लेकिन इस पर फैसला 1956 में लिया था। हर वर्ष 14 अक्टूबर को बड़ी संख्या में लोग दीक्षाभूमि में जुटते हैं। यही नहीं आंबेडकर जयंती और पुण्यतिथि पर भी यहां कार्यक्रमों का आयोजन होता है। शैलेष नरनावारे की ओर से दाखिल अर्जी में संवैधानिक नियमों का हवाला देते हुए कहा गया कि देश की सांस्कृतिक विविधता के अनुसार सभी को अपने संस्थानों के विकास का अधिकार है।
जनहित याचिका में शैलेष नरनावारे ने हाई कोर्ट से मांग की कि स्थानीय प्रशासन को जमीन अधिग्रहण करके दीक्षाभूमि को सौंपने का आदेश दिया जाए। उन्होंने कहा कि कॉटन रिसर्च इंस्टिट्यूट से 3.84 एकड़ भूमि और माता कचहरी से 16.44 एकड़ भूमि ली जा सकती है। यदि यह जमीन मिल जाए तो दीक्षाभूमि का विकास हो सकता है। याचिका पर सुनवाई करते हुए हाई कोर्ट की डिविजन बेंच जस्टिस नितिन सांबरे और जस्टिस अभय मंत्री ने महाराष्ट्र के शहरी विकास मंत्राल., नागपुर सुधार ट्रस्ट, नागपुर के नगर निगम को नोटिस जारी किया है और इस मांग पर जवाब मांगा है।
याचिकाकर्ता ने कहा कि दीक्षाभूमि के लिए इस जमीन के अधिग्रहण में देरी नहीं करनी चाहिए। ऐसा इसलिए क्योंकि दीक्षाभूमि में काम चल रहा है। ऐसे में प्रोजेक्ट्स के विस्तार के लिए जमीन की जरूरत है। यही नहीं कुछ स्मारकों के संरक्षण के लिए भी ऐसा करना जरूरी है। उन्होंने यह भी कहा कि प्रशासन की ओर से मंजूरी मिलने में देरी हो रही है। उन्होंने कहा कि पिछले दिनों 181 करोड़ रुपये की परियोजना पेश की गई थी, लेकिन उस पर मंजूरी मिलने में देरी हो रही है।