दोहा में अफगानिस्तान मुद्दे पर UN की बैठक में शामिल हुआ भारत

भारत रविवार को दोहा में शुरू हुए अफगानिस्तान पर संयुक्त राष्ट्र के तीसरे सम्मेलन में भाग ले रहा है। इसमें 25 देश भाग ले रहे हैं। बैठक में तालिबान शासित देश में अफगान लोगों के जीवन को बेहतर बनाने के तरीकों पर बातचीत होगी। ऐसा पहली बार है जब तालिबान इस तरह की बातचीत में भाग ले रहा है। हालांकि, संयुक्त राष्ट्र ने इस बात से इनकार किया है कि इस बैठक में तालिबान को अंतर्राष्ट्रीय मान्यता देने की कोई बातचीत होगी। सम्मेलन में अफगान महिलाओं और सिविल सोसाइटी के सदस्यों को शामिल न करने के लिए मानवाधिकार समूहों ने इस बैठक की आलोचना भी की है।

इस बैठक में भारत का प्रतिनिधित्व पाकिस्तान, अफगानिस्तान और ईरान (पीएआई) प्रभाग के विदेश मंत्रालय के संयुक्त सचिव जे पी सिंह कर रहे हैं। इस साल मार्च में काबुल का दौरा करने वाले जे पी सिंह ने दोहा में तालिबान नेताओं से भी मुलाकात की थी। भारत तालिबान के मामले में सावधानी से कदम बढ़ा रहा है। भारत अफगानिस्तान के लोगों की जरूरतों और अपनी सुरक्षा संबंधित चुनौतियों को देखते हुए लिए तालिबान के साथ मिलकर काम कर रहा है। हालांकि भारत ऐसा कोई कदम नहीं उठा रहा है जिसे काबुल में तालिबानी शासन को आधिकारिक मान्यता देने की दिशा में एक कदम के रूप में देखा जाए। दोहा में होने वाले सम्मेलन में यूरोपीय संघ, ओआईसी और एससीओ के देश भी भाग ले रहे हैं। 

एससीओ इस सप्ताह अस्ताना में शिखर बैठक की मेजबानी करेगा, जहां एक बार फिर मुख्य केंद्र में से एक अफगानिस्तान की स्थिति होगी। पीएम नरेंद्र मोदी के भाग न पाने के बाद, विदेश मंत्री एस जयशंकर एससीओ शिखर सम्मेलन में भारत का प्रतिनिधित्व करेंगे। हालांकि मोदी 4 जुलाई को वर्चुअली इसे संबोधित कर सकते हैं।

दोहा और अस्ताना में भारत अपनी इस बात पर और जोर देगा कि एक पड़ोसी के रूप में भारत के अफगानिस्तान में आर्थिक और सुरक्षा हित हैं। साथ ही भारत इस बात पर बल देगा कि अंतर्राष्ट्रीय समुदाय को आतंकवाद का मुकाबला करने, मानवीय सहायता, समावेशी सरकार के गठन और महिलाओं और अल्पसंख्यकों के अधिकारों के संरक्षण पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए।

अफगानिस्तान में 3 बिलियन डॉलर का निवेश कर चुका है भारत

अफगानिस्तान में अपने निवेश को सुरक्षित करना भी भारत के लिए एक प्राथमिकता है क्योंकि यह देश में बिजली, जल आपूर्ति, सड़क संपर्क, स्वास्थ्य सेवा, शिक्षा और कृषि जैसे क्षेत्रों में करीब 500 परियोजनाओं पर काम कर रहा है। कुल मिलाकर भारत ने अफगानिस्तान में 3 बिलियन डॉलर से अधिक का निवेश किया है। हालांकि, यह सुनिश्चित करना कि अफगान क्षेत्र का उपयोग आतंकवादियों को शरण देने के लिए नहीं किया जाता है, भारतीय प्राथमिकताओं की सूची में सबसे ऊपर है। यह विशेष रूप से संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद द्वारा प्रतिबंधित आतंकवादियों के संबंधित है, जिनमें पाकिस्तान स्थित लश्कर-ए-तैयबा और जैश-ए-मोहम्मद के आतंकवादी शामिल हैं। भारत एक बार फिर यह बात कहना चाहेगा कि अफगानिस्तान में कोई भी अस्थिरता पूरे क्षेत्र के लिए खतरा है।

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