बिहार में भीषण गर्मी का प्रकोप, जानिए ’50 डिग्री’ तापमान के पीछे ये है असल वजह

राजधानी समेत प्रदेश भीषण गर्मी व लू से परेशान है। बंगाल की खाड़ी से आने वाली नमी युक्त पुरवा हवा प्रवाहित होने के बाद भी इसकी शीतलता लोगों को राहत नहीं पहुंचा रही है। पछुआ हवा के बीच जब कभी पुरवा का प्रभाव बनता भी तो कंक्रीट की बनी बहुमंजिली इमारतें पुरवा की प्राकृतिक शीतलता को सोख लेती है।

दूसरी ओर शहर में तेजी से घटते पेड़-पौधे और घरों से निकलने वाली एसी की गर्म हवा आसपास के वातावरण को गर्म कर देती है। इस कारण तापमान सामान्य से अधिक होने के साथ पुरवा कमजोर पड़ जाती है।

एएन कालेज के पूर्व प्राचार्य प्रो. बिहारी सिंह बताते हैं, हवा की प्रकृति को कोई बदल नहीं सकता है। पुरवा हवा नमीयुक्त होती है, इसमें शीतलता होती है। खेत-खलिहान, मैदानों को पार कर जब शहर पहुंचती है तो यह कमजोर हो जाती है।

उन्होंने कहा कि शहर में घनी आबादी और कंक्रीट से बनी ऊंची इमारत, पेड़-पौधे के अभाव में पुरवा हवा की प्रकृति का आनंद नहीं उठा पाते हैं। ऐसे में तापमान बढ़ने के साथ उमस भरी गर्मी लोगों को परेशान करती है। ऊंचे भवन सूर्य के तल्ख तेवर के कारण दिन भर तपकर गर्म हो जाते हैं।

कंक्रीट के भवन होने के कारण इसमें गर्मी अधिक होती है। शाम तक इससे गर्मी निकलते रहती है और आसपास उच्च ताप का क्षेत्र बन जाता है। वहीं, रात में शहरी क्षेत्रों में रहने वाले लोग गर्मी से परेशान होते हैं।

पुरवा के प्रवाह में ऊंचे भवन बाधक

मौसम विज्ञानी एसके पटेल बताते हैं, पछुआ के कारण कई शहरों का तापमान सामान्य से अधिक बना हुआ है। वहीं, जब पुरवा का प्रवाह होता है तो ऊंचे भवन बाधक बनते है। घनी आबादी होने के कारण पुरवा हवा का लाभ लोग ढंग से नहीं उठा पाते हैं।

पेड़ों की कटाई अधिक, पौधारोपण कम

पर्यावरण संरक्षण के प्रति लोगों को सचेत होने की जरूरत है। प्रो. बिहारी बताते हैं, समय के साथ विकास जरूरी है लेकिन प्रकृति से खिलवाड़ करने से इसका दुष्परिणाम भी हम सभी को झेलना पड़ेगा। आज के परिवेश में जब तापमान 40 डिग्री सेल्सियस के ऊपर चला जा रहा है ऐसे में लोगों के साथ पशु-पक्षियों की भी हालत खराब है। जब 50 के पार तापमान जाएगा तो ताप सहन करना मुश्किल होगा।

उन्होंने कहा कि ऐसे में अधिक से अधिक से छायादार पौधे लगाने के सिवाय कोई विकल्प नहीं है। छायादार पेड़ों में पीपल, बरगद, नीम वायुमंडल में मौजूद कार्बन डाई आक्साइड को शोषित कर हमें शुद्ध हवा देने के साथ वातावरण को संतुलित रखते हैं। आज खासतौर पर ऐसे पौधे का अभाव हो गया है।

उन्होंने यह भी कहा कि विकास के नाम पर पेड़ों की कटाई हो रही है पर इसके स्थान पर पौधारोपण कार्य कम है। वातावरण में बढ़ रही उष्णता यह बता रही है कि पर्यावरण संरक्षण के प्रति विशेष ध्यान देना होगा। वर्षा की कमी व जलवायु परिवर्तन में पेड़-पौधे की संख्या में कमी आना सबसे बड़ा कारण है।

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