MP: ज्योतिरादित्य सिंधिया बीजेपी के टिकट पर लड़ रहे चुनाव….

लोकसभा चुनाव का बिगुल बजने के बाद दो चरणों का मतदान हो चुका है। अब तीसरे चरण के मतदान के लिए सभी पार्टियां जी जान लगा रही हैं। इसी बीच मध्यप्रदेश में गुना शिवपुरी सीट पर ज्योतिरादित्य सिंधिया बीजेपी के टिकट पर चुनाव लड़ रहे हैं। सिंधिया घराने से ताल्लुक रखने वाले ज्योतिरादित्य राजघराने की छवि से बाहर आ चुके हैं। कांग्रेस से बीजेपी में आने के बाद वे श्रीमंत की छवि तोड़कर केसरिया रंग में रंग चुके हैं।

केसरिया रंग के साथ रगों में दौड़ती राजशाही का तालमेल ज्योतिरादित्य सिंधिया की नई पहचान बन गया है। आम जनता के बीच लोकप्रियता का नया पैमाना बन गया है। यह बदलाव ‘श्रीमंत’ की छवि से अलग भाजपा के केसरिया रंग को भी गहरा कर रहा है।

कांग्रेस छोड़ी, तो रंग केसिरया रंग में

चार साल पहले कांग्रेस से बीजेपी की ओर रुख करने वाले ज्योतिरादित्य कांग्रेस में जब तक थे अपने पिता स्वर्गीय माधवराव सिंधिया की ​राजनीतिक और शाही विरासत को आगे बढ़ा रहे थे। तब श्रीमंत की छवि अलग ही प्रभाव रखती थी। लेकिन 2020 में वे बीजेपी में शामिल हो गए और तब से वे लगातार केसरिया रंग में रंगे हुए हैं।

सिंधिया की हार जीत का ऐसा रहा समीकरण

केसरिया रंग से जुड़ाव जनता के लिए सबसे आसान माध्यम बन गया है। गुना शिवपुरी सीट से बीजेपी के प्रत्याशी बनने के साथ ही जनता के साथ उनका जुड़ाव भी दिखाई दे रहा है। सिंधिया बतौर कांग्रेस प्रत्याशी पिछला लोकसभा चुनाव इसी सीट से लड़े थे लेकिन केपी सिंह यादव से हार गए थे। उन्होंने हार का ठीकरा तत्कालीन मुख्यमंत्री कमल नाथ और दिग्विजय सिंह के सिर फोड़ा था। तभी से ही वे कांग्रेस से अलग होने का मन बना चुके थे। बीजेपी में वह ‘श्रीमंत’ की छवि तोड़कर कार्यकर्ता की छवि गढ़ने में सफल रहे हैं।

गुना शिवपुरी में कांग्रेस प्रत्याशी के​ लिए नहीं आए स्टार प्रचारक

साल 2019 का चुनाव छोड़ दें तो गुना शिवपुरी सीट से सिंधिया परिवार या उनके समर्थक जीतते आ रहे हैं। इस बार चुनाव में उनके प्रतिद्वंद्वी कांग्रेस प्रत्याशी के समर्थन में न कोई स्टार प्रचारक आ रहा है, न ही राहुल गांधी या प्रियंका गांधी प्रचार कर रही है। वर्ष 2019 का चुनाव छोड़ गुना-शिवपुरी सीट से सिंधिया परिवार या उनका समर्थक ही जीतता रहा है। प्रियंका गांधी वाड्रा व राहुल गांधी की इच्छा सिंधिया को हराने की बताई जाती है, लेकिन अब तक कांग्रेस का कोई बड़ा नेता यहां नहीं आया है।

सिंधिया को अभी तक नहीं भूल पा रही कांग्रेस

कांग्रेस छोड़े ज्योतिरादित्य को चार साल हो गए, इसके बाद भी कांग्रेस उन्हें भूल नहीं सकी है। राहुल-प्रियंका से उनकी करीबी भी जगजाहिर रही है। कांग्रेस को सिंधिया के भाजपा में जाने के बाद से उपचुनाव 2020, 2023 में विधानसभा में पराजय का सामना करना पड़ा। यही कारण है कि सिंधिया को लेकर कांग्रेस की बेचैनी बार-बार सामने आती रहती है।

अपने दम पर चुनौती दे रहे यादव

2019 में यहां से कांग्रेस छोड़कर भाजपा गए केपी सिंह यादव ने ज्योतिरादित्य सिंधिया को हराया था। अब सिंधिया भाजपा से चुनाव मैदान में हैं तो कांग्रेस ने यादव प्रत्याशी मैदान में उतारा है। वह अकेले ही सिंधिया को चुनौती दे रहे हैं।

आमजन के मन में कायम है ‘श्रीमंत’ की छवि

चुनाव प्रचार के दौरान वे किसानों से समस्या सुनते हैं। बुजुर्गों को गले लगाते हैं।

महल का प्रभाव होने के कारण अब भी कई लेग सिंधिया के प्रति महाराजा वाला भाव ही रखते हैं। कई लोग उनके पैर छूने का प्रयास करते हैं, पर तत्क्षण सिंधिया लोगों को गले लगाते हैं। स्थानीय कार्यकर्ताओं को भी तवज्जो दे रहे हैं।

ऐसी रही सिंधिया परिवार की राजनीतिक विरासत

सिंधिया के परिवार के सदस्य कांग्रेस और बीजेपी दोनों पार्टियों में रहे हैं। सिंधिया के दादा जीवाजी राव का रुझान भी हिंदू महासभा की तरफ था। दादी राजमाता विजयाराजे सिंधिया तो जनसंघ में सक्रिय रहकर भाजपा के संस्थापकों में से एक रही हैं। यही वजह है कि ज्योतिरादित्य सिंधिया को विचारधारा अपनाने में परेशानी नहीं आई।

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