पीलीभीत में बसपा ने उतारा मुस्लिम उम्मीदवार, पढ़ें पूरी खबर…
सपा (पिछड़ा, दलित, अल्पसंख्यक) का नारा लगाकर मैदान में उतरी है, दूसरी ओर बसपा ने मुस्लिम प्रत्याशी देकर चुनावी लड़ाई को रोचक कर दिया। अब दोनों दलों के नेता मुस्लिम मतदाताओं के बीच पैठ बनाने की जुगत में लगे हुए हैं।
दोनों दलों ने मुस्लिम बहुल क्षेत्रों में बैठकें बढ़ा दी हैं। जातिगत समीकरण साधने के प्रयास भी हो रहे हैं। दांव-पेंच के बीच संसदीय क्षेत्र में चुनावी लड़ाई रोचक होती दिख रही है।
पीलीभीत लोकसभा क्षेत्र में तराई के जिले के चारों विधानसभा क्षेत्र पीलीभीत शहर, बरखेड़ा, बीसलपुर तथा पूरनपुर के अलावा बरेली जनपद की बहेड़ी विधानसभा भी शामिल है। पांचों विधानसभा क्षेत्रों में मुस्लिम मतदाताओं की संख्या कुल मतदाताओं के लगभग 30 प्रतिशत हैं। इसके अलावा संसदीय क्षेत्र में लोध किसान, कुर्मी, दलित मतदाताओं की संख्या भी ठीक है।
35 साल से मेनका-वरुण का रहा वर्चस्व
संसदीय सीट पर विगत 35 वर्ष से पूर्व केंद्रीय मंत्री सांसद मेनका गांधी (Menka Gandhi) तथा उनके पुत्र सांसद वरुण गांधी (Varun Gandhi) का वर्चस्व रहा है। वर्ष 1991 के लोकसभा चुनाव में भाजपा प्रत्याशी डॉ. परशुराम गंगवार ने जीत दर्ज की थी।
वर्ष 2022 के विधानसभा चुनाव में पीलीभीत शहर, बरखेड़ा और बीसलपुर विधानसभा सीटों पर भाजपा टिकट पर लोध किसान तथा कुर्मी जाति के विधायक चुने गए, वहीं पूरनपुर सुरक्षित सीट पर भी भाजपा के बाबूराम दोबारा विधायक चुने गए।
बरेली की बहेड़ी विधानसभा सीट पर समाजवादी पार्टी के अतार्रुहमान ने जीत हासिल की थी। विधानसभा चुनाव के नतीजों को ध्यान में रखकर ही समाजवादी पार्टी ने इस बार लोकसभा चुनाव में पिछड़े, दलित और अल्पसंख्यक (पीडीए) के भरोसे चुनावी वैतरणी पार करने की रणनीति बनाई।
जिसके तहत समाजवादी पार्टी आलाकमान ने बरेली के नबावगंज विधानसभा सीट से पूर्व मंत्री भगवतसरन गंगवार को प्रत्याशी घोषित किया है। पार्टी पिछड़ा, दलित और अल्पसंख्यक मतों पर ध्यान दे रही। दूसरी ओर बहुजन समाज पार्टी पूर्व मंत्री अनीस अहमद खां उर्फ फूल बाबू को प्रत्याशी बना चुकी है।
हालांकि, समाजवादी पार्टी के नेता कहते हैं कि इससे कोई फर्क नहीं पड़ेगा। बड़ी संख्या में मुस्लिम मतदाता पार्टी से जुड़े रहे हैं। इसे ध्यान में रखते हुए जिले में पार्टी ने मुस्लिम नेताओं को नेतृत्व सौंपा था। दूसरी ओर, बहुजन समाज पार्टी के नेता मानते हैं कि पूर्व मंत्री अनीस अहमद के प्रत्याशी होने से लाभ मिलेगा।
मुस्लिम और बसपा के आधार वोट बैंक अनुसूचित जाति के मतदाताओं को साथ लेकर चुनाव की ओर बढ़ा जाएगा।