जानिए होलाष्टक में क्यों नहीं होते शुभ कार्य, पढ़ें पौराणिक कथा
होलाष्ट की 17 मार्च से शुरुआत हो चुकी है। इसका समापन 24 मार्च को होगा। फाल्गुन मास की शुक्ल पक्ष की अष्टमी तिथि से होलाष्टक शुरू होता है। होली के 8 दिन पहले से होलाष्टक मनाया जाता है। इस काल का सनातन धर्म में विशेष महत्व है। मान्यता के अनुसार, होलाष्टक की शुरुआत वाले दिन भगवान शिव ने कामदेव को भस्म किया था। इस काल में ग्रह उग्र होते हैं। इसलिए होलाष्टक में शुभ काम नहीं करते हैं।
होलाष्टक की कथा
पौराणिक मान्यता के अनुसार, भक्त प्रहलाद को उसके पिता राजा हिरण्यकश्यर ने लगातार आठ दिनों तक तमाम तरह की यातनाएं दी थी। इसलिए होलाष्टक के 8 दिनों में कोई शुभ कार्य नहीं करना चाहिए। होलिका दहन के दिन प्रहलाद बच जाता है। उसकी खुशी में होली का पर्व मनाया जाता है।
होलाष्टक की दूसरी कथा
दूसरी पौराणिक कथा के अनुसार, तपस्या भंग करने का प्रयास करने पर महादेव ने कामदेव को फाल्गुन शुक्ल अष्टमी तिथि को भस्म कर दिया था। कामदेव प्रेम के देवता हैं। कामदेव की पत्नी रति ने भगवान शिव से माफी मांगी और अपने पति को पुनर्जीवन की विनती की। भोलेनाथ ने रति को आशीर्वाद धुलंडी के दिन दिया था। होली से पहले 8 दिन रति ने पति के विरह में काटे। जिसके कारण कोई शुभ काम नहीं किया जाता है।