उत्तराखंड: UCC में महिलाओं के लिए वसीयत पर यह नियम, पढ़ें पूरी खबर…
समान नागरिक संहिता (यूसीसी) का सर्वाधिक सकारात्मक असर महिलाओं की आर्थिक और सामाजिक स्थिति में सुधार के रूप में नजर आएगा। जानकारों के मुताबिक, पर्सनल लॉ में मुख्य तौर पर अधिकारों को लेकर महिलाओं के साथ भेदभाव साफ नजर आता है, ऐसे में यूसीसी के जरिए नागरिक कानूनों में आने वाली समानता का सबसे बड़ा लाभ सभी वर्गों की महिलाओं को मिलेगा।
महिला अधिकारों की पैरवी करने वाले, विधेयक के प्रावधानों को दूरगामी परिणाम वाला करार दे रहे हैं।यूसीसी सहित कई विषयों पीआईएल दायर करने वाले सुप्रीम कोर्ट के एडवोकेट अश्विनी उपाध्याय कहते हैं कि समान नागरिक संहिता देश में नागरिक अधिकारों में हर तरह का भेदभाव समाप्त करने के लिए जरूरी है।
अभी समुदाय आधारित भेदभाव का सर्वाधिक नुकसान महिलाओं को उठाना पड़ता है। कई धर्मों में महिलाओं की शादी अब भी 18 साल की वयस्कता की उम्र हासिल करने से पहले हो जाती है। इसी तरह महिलाओं को तलाक लेने में भी पुरुषों के समान अधिकार हासिल नहीं हैं। सम्पत्ति और उत्तराधिकार में भी वर्तमान नागरिक कानून महिलाओं के साथ भेदभाव करते हैं।
इसलिए उत्तराखंड सरकार की ओर से प्रस्तुत किया गया यूसीसी बिल, महिलाओं को सशक्त करने की दिशा में अहम कदम साबित होगा। उपाध्याय ने बताया कि यूसीसी, बाल विवाह, बहुविवाह जैसी कुप्रथाओं को समाप्त करते हुए, विवाह को कॉन्ट्रैक्ट के बजाय स्थायित्व प्रदान करेगा। यह संहिता बच्चे की पहचान जैविक संतान के रूप में करती है, इससे किसी भी स्थिति में पैदा संतान को उसके अभिभावकों से एक समान अधिकार मिलेंगे।
उपाध्याय के मुताबिक, किसी भी धर्म में पैदा होने वाला लड़का हो या लड़की मां के पेट में नौ महीने ही रहता है, मां को प्रसव पीड़ा भी एक समान ही होती है। इससे स्पष्ट है कि महिला-पुरुष में भेदभाव भगवान, खुदा या जीसस ने नहीं बल्कि इंसान ने किया है। इस कारण कुरीतियों और कुप्रथाओं को धर्म से जोड़ना बिलकुल गलत है। एक प्रगतिशील समाज के निर्माण के लिए समान नागरिक संहिता बेहद जरूरी है।
सामाजिक सुरक्षा बढ़ेगी
समान नागरिक संहिता में पति या पत्नी के रहते दूसरी शादी यानि बहु विवाह पर रोक लगाई गई है। इससे विशेष तौर पर मुस्लिम महिलाओं को सामाजिक सुरक्षा हासिल होगी, एडवोकेट अश्विनी उपाध्याय के मुताबिक अभी मुस्लिम पर्सनल लॉ में बहुविवाह करने की छूट है, अब इस प्रथा पर रोक से मुस्लिम महिलाएं सामाजिक रूप से ज्यादा मजबूत हो सकेंगी।
तलाक का समान आधार भी महिलाओं के हक में जाएगा। नए कानून में लिव इन रिलेशनशिप को भी नियमित किया गया है। लिव इन से पैदा होने वाले बच्चे के अधिकार भी सुरक्षित रह सकेंगे, साथ ही वयस्क उम्र के बाद आपसी सहमति से साथ रहने वाले अविवाहित जोड़ो को भी सुरक्षा हासिल हो सकेगी।
संपत्ति में बेटी का बेटे के समान अधिकार
यूसीसी के तहत पिता की संपत्ति में बेटियों को बेटों के समान हक सुनिश्चित करने की व्यवस्था की गई है। अभी तक पिता की संपत्ति में बेटियों को अधिकार को लेकर विभिन्न धर्मों में अलग-अलग व्यवस्था थी। यूसीसी से इसमें एकरूपता आएगी। पिता के निधन के बाद मां, बेटे और बेटी में संपत्ति बराबर बांटी जाएगी।
हाईकोर्ट के अधिवक्ता संदीप कोठारी ने बताया कि यूसीसी में किए गए प्रावधानों का सर्वाधिक लाभ सभी धर्मों की बेटियों को मिलेगा। वे और अधिक अधिकार संपन्न होंगी। मुस्लिम बेटियां निश्चित तौर पर सबसे अधिक लाभान्वित होंगी।
अठारह वर्ष से पहले शादी पर होगी सजा
अभिभावक यदि गलत जानकारी देकर 18 वर्ष से पहले लड़की की शादी कराता है तो उसे तीन माह की सजा झेलनी होगी। विधेयक में इसका प्रावधान किया गया है। दरअसल, मुस्लिम समुदाय के अलावा अन्य सभी समुदायों में लड़कियों के लिए शादी की न्यूनतम उम्र 18 वर्ष और लड़कों के लिए 21 वर्ष तय है।
मुस्लिम समुदाय में लड़की की विवाह के लिए न्यूनतम आयु वह होती है जब उसका मासिक धर्म शुरू होता है। उधर, यूसीसी में गोद लेने व विवाह संबंधित वादों के अलावा अन्य व्यक्तियों से संबंधित भरण पोषण को शामिल नहीं गया है।
वसीयत के भी एक समान नियम
समान नागरिक संहिता में वसीयत को लेकर सभी धर्मों के लिए एक समान प्रावधान किए गए हैं। अब तक मुस्लिम, ईसाई, पारसी समुदायों में वसीयत के अलग-अलग नियम हैं। वसीयत के लिए सभी धर्मों के अलग-अलग बने नियमों को अब यूसीसी में एक समान कर दिया गया है।
यह उत्तराखंड के लिए गौरवशाली क्षण है। यूसीसी से हर धर्म और वर्ग की मातृशक्ति को समानता तथा समरसता का अधिकार मिलेगा। विश्व के कई इस्लामिक देशों में समान नागरिक संहिता पहले से लागू है। यूसीसी का निर्माण संविधान से मिले अधिकार के तहत किया गया है। भाजपा दशकों से इस तरह के मुद्दों को लेकर चल रही थी। धीरे-धीरे सभी को लागू किया किया जा रहा है।