‘जनसंख्या विस्फोट’ में फंसा कनाडा, उठा सकता है ये सख्त कदम…

बाहर से आने वाले लोगों की संख्या को हैंडल करने में कनाडा की हालत खराब होती जा रही है। कनाडा के अर्थशास्त्रियों ने चेतावनी देते हुए बाहरी लोगों की संख्या को सीमित करने का आह्वान किया है। दरअसल नेशनल बैंक ऑफ कनाडा के अर्थशास्त्रियों की रिपोर्ट में देश में बाहर से आने वाले लोगों की बढ़ती जनसंख्या को लेतर चिंता जताई गई है। इसमें कहा गया है कि 2023 में 12 लाख लोग आए। कनाडा में बाहर से आकर बसने वालों में 30 प्रतिशत अकेले भारतीय हैं।

कनाडा जनसंख्या के विस्फोट में फंस गया 

अर्थशास्त्री स्टीफन मैरियन और एलेक्जेंड्रा डुचर्मे ने नेशनल बैंक ऑफ कनाडा के लिए एक रिपोर्ट लिखी है।यह रिपोर्ट सोमवार को जारी हुई थी। इसमें कहा गया, “कनाडा जनसंख्या विस्फोट में फंस गया है। यह देश ऐतिहासिक रूप से उभरती अर्थव्यवस्थाओं का संरक्षक रहा है। लेकिन वर्तमान जनसंख्या वृद्धि को संभालने और हमारे जीवन स्तर में सुधार करने के लिए हमारे पास बुनियादी ढांचे और पैसों की भारी कमी है।”

रिपोर्ट में बताया गया है कि 2023 में देश की जनसंख्या में 12 लाख की वृद्धि हुई, जो अब तक की सबसे अधिक वार्षिक वृद्धि है। इसके अलावा, 1949 के बाद पहली बार जब जनसंख्या एक वर्ष में 6 लाख से अधिक बढ़ी है। इसी साल 1949 में न्यूफाउंडलैंड प्रांत कनाडा में शामिल हुआ था।

स्टैटिस्टिक्स कनाडा के आंकड़ों का हवाला देते हुए, ग्लोब एंड मेल अखबार ने बताया कि कनाडा में लगभग 25 लाख अस्थायी निवासी हैं। इनमें मुख्य रूप से वे लोग हैं जो वर्क परमिट पर पढ़ाई कर रहे हैं। हालांकि नेशनल बैंक ऑफ कनाडा ने रिपोर्ट में इस संख्या को बहुत कम करने का आह्वान किया है। इसने कहा कि “इस वक्त हमारा मानना ​​है कि अगर हमें जनसंख्या विस्फोट से बचना है तो हमारे देश की वार्षिक कुल जनसंख्या वृद्धि 300,000 से 500,000 से अधिक नहीं होनी चाहिए।”

कनाडा में बढ़ी भारतीयों की संख्या

दूसरे देशों के लोगों की बढ़ती संख्या के चलते कनाडा में आप्रवासन के खिलाफ गुस्सा फूट रहा है। आउटलेट सीटीवी के लिए किए गए एक सर्वे में, एजेंसी नैनोस रिसर्च ने पाया कि सर्वे में शामिल 61 प्रतिशत लोग चाहते थे कि कनाडा 2023 की तुलना में इस वर्ष कम अप्रवासियों को देश में लाए। यह सितंबर 2023 की तुलना में कम आप्रवासन (बाहरी लोगों को) चाहने वालों में आठ प्रतिशत की वृद्धि थी। अधिक अप्रवासियों को स्वीकार करने की इच्छा रखने वाले अनुपात में गिरावट जारी है। यानी 2020 में 17 प्रतिशत लोग चाहते थे कि ज्यादा से ज्यादा बाहरी लोग आएं लेकिन अब यह संख्या केवल पांच प्रतिशत रह गई है। सर्वे में शामिल तीन-चौथाई (73.5 प्रतिशत) लोगों ने आवास और बुनियादी ढांचे की कमी का हवाला दिया। वे चाहते हैं कि आप्रवासन स्तर में कमी आए।

अधिकांश कैटेगरी में बाहर से कनाडा आने वालों में लगभग 30 प्रतिशत अप्रवासी भारत के हैं। 2022 में, भारतीयों की संख्या 118,224 थी। यानी कुल 437,539 स्थायी निवासियों का दर्जा पाने वालों में से लगभग 27 प्रतिशत भारतीय शामिल थे। अस्थायी श्रेणियों में भी भारतीयों का प्रतिशत बढ़ गया है। आव्रजन, शरणार्थी और नागरिकता कनाडा (आईआरसीसी) डेटा के अनुसार, नवंबर 2023 के अंत तक, स्टडी परमिट वाले कुल 579075 में से 215910 भारतीय नागरिक थे। उनकी संख्या 37 प्रतिशत से अधिक थी। अक्टूबर 2023 तक, 828335 अस्थायी वर्क परमिट जारी किए गए थे, जिनमें से 247495 यानी लगभग 30 प्रतिशत भारतीय थे।

भारतीयों पर असर पड़ने की संभावना

इस बीच कनाडाई सरकार ने संकेत दिया है कि वह अंतरराष्ट्रीय छात्रों और अस्थायी श्रमिकों की संख्या सीमित करेगी लेकिन उसने ऐसी कार्रवाई के लिए कोई समयसीमा नहीं दी है। कनाडा के आव्रजन मंत्री मार्क मिलर ने कहा है कि उनका देश आवास की मांग में वृद्धि को कम करने और बेकाबू हो चुकी प्रणाली को दुरुस्त करने के लिए अंतरराष्ट्रीय छात्रों की संख्या सीमित करने की संभावना पर विचार कर रहा है। इस कदम से भारतीय छात्रों पर असर पड़ सकता है।

मिलर की टिप्पणी रविवार को तब आई जब प्रधानमंत्री जस्टिन ट्रूडो की सरकार को स्थायी और अस्थायी दोनों तरह के प्रवासियों की बढ़ती आबादी का स्वागत करने के लिए आलोचना का सामना करना पड़ा, क्योंकि देश को आवास की भारी कमी का सामना करना पड़ रहा है। सीटीवी न्यूज के साथ एक साक्षात्कार में मिलर ने कहा कि संघीय सरकार को प्रांतीय सरकारों के साथ बातचीत करने की आवश्यकता होगी, ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि जो प्रांत अपना काम नहीं कर रहे हैं वे संबंधित संख्या को सीमित करें।

मिलर ने कनाडा में अंतरराष्ट्रीय छात्रों की बढ़ती संख्या के संदर्भ में कहा, “यह संख्या परेशान करने वाली है। यह वास्तव में एक ऐसी व्यवस्था है जो नियंत्रण से बाहर हो गई है।” साल 2022 में कनाडा में अध्ययन परमिट धारकों के मामले में शीर्ष दस देशों में भारत पहले स्थान पर था, जहां से कुल 3,19,000 छात्र थे।

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