नजूल भूमि विधेयक राष्ट्रपति भवन में अटका, मालिकाना हक पर उत्तराखंड में फिर बढ़ा लोगों का इंतजार

उत्तराखंड का नजूल विधेयक फिर राष्ट्रपति भवन में अटक गया है। मार्च में विधेयक उत्तराखंड विधानसभा से पारित होने के बाद अंतिम मंजूरी के लिए राष्ट्रपति भवन भेजा गया था। जहां से अब तक विधेयक को हरी झंडी नहीं मिल पाई है। 

नजूल भूमि पर बसे परिवारों को मालिकाना हक देने के लिए, उत्तराखंड सरकार ने गैरसैंण में आयोजित बजट सत्र के दौरान उत्तराखंड नजूल भूमि प्रबंधन, व्यवस्थापन एवं निस्तारण विधेयक पारित किया था। इसके बाद राष्ट्रपति भवन में भेजा गया थ।

चूंकि नजूल भूमि केंद्र सरकार के अधीन भी आती है तो राजभवन ने विधेयक को अपने स्तर से मंजूरी देने के बजाय इसे राष्ट्रपति भवन के जरिए गृह मंत्रालय के पास भेज दिया। तब से करीब आठ महीने का समय बीतने के बावजूद विधेयक वापस नहीं लौट पाया है।

इस कारण नजूल भूमि पर बसे हजारों परिवारों का इंतजार बढ़ गया है। इससे पूर्व सरकार ने गत विधानसभा चुनाव से पहले भी विधेयक को विधानसभा पारित कर कानून बनाने का प्रयास किया था, लेकिन तब केंद्र सरकार ने विधेयक को कुछ आपत्तियों के साथ वापस लौटा दिया था।

इन आपत्तियों को दूर करते हुए अब नए सिरे से विधेयक केंद्र सरकार के पास भेजा गया है। फिलहाल नजूल आवंटन नजूल नीति के आधार पर किया जा रहा है, लेकिन इस नीति की समय सीमा भी आगामी 11 दिसंबर को समाप्त हो रही है।

वर्ष 2009 से चल रहा है मामला

नजूल आवंटन के लिए प्रदेश सरकार सबसे पहले वर्ष 2009 में नजूल नीति लेकर आई थी। इसके अंतर्गत लीज और कब्जे की भूमि को सर्किल रेट के आधार पर फ्री-होल्ड कराकर मालिकाना हक देने की प्रक्रिया शुरू की गई। इस कड़ी में बड़ी संख्या में नजूल भूमि पर काबिज व्यक्तियों ने प्रक्रियाएं पूरी कर निर्धारित धनराशि भी जमा कराई। लेकिन 2018 हाईकोर्ट से नजूल नीति निरस्त होने के कारण यह प्रक्रिया लटक गई।

चार लाख हेक्टेयर नजूल भूमि है उत्तराखंड में

आवास विभाग के आंकड़ों के अनुसार, प्रदेश में करीब 3,92,024 हेक्टेयर नजूल भूमि है। जो मुख्य रूप से यूएसनगर, हरिद्वार, रामनगर, नैनीताल, देहरादून जैसे शहरों में है। रुद्रपुर में करीब 24 हजार परिवार नजूल भूमि पर बसे हुए हैं, इसके साथ ही शहरों में प्रमुख बाजार तक नजूल की भूमि पर बसे हैं। इस कारण नजूल का नियमितिकरण इन शहरों में एक बड़ा मुद्दा रहा है।

उत्तराखंड विधानसभा से पारित नजूल विधेयक अब भी केंद्र सरकार के पास विचाराधीन है। इस बीच पूर्व में एक साल के लिए जारी नजूल नीति की समय सीमा भी अगले माह समाप्त हो रही है। इस कारण तात्कालिक तौर पर इस समय सीमा को आगे बढ़ाने पर विचार किया जा रहा है।

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