इस दिन है वृश्चिक संक्रांति, जानिए पूजा का महत्व, इन वस्तुओ का करें दान
भारतीय ज्योतिष के मुताबिक, सूर्य देव जब एक राशि से दूसरी राशि में प्रवेश करते हैं तो इसे संक्रांति पर्व कहा जाता है। चूंकि सूर्य देव एक राशि में 30 दिन के लिए ही विराजमान रहते हैं तो ऐसे में हर माह संक्रांति पर्व जरूर आता है। इस बार वृश्चिक संक्रांति 17 नवंबर को होगी।
आत्मा का कारक ग्रह है सूर्य
ज्योतिष के मुताबिक, सूर्य को आत्मा का कारक माना गया है। 17 नवंबर को सूर्य देव तुला राशि से निकलकर वृश्चिक राशि में प्रवेश करेंगे। इस दौरान दान का विशेष महत्व होता है। पौराणिक मान्यता है कि संक्रांति पर्व पर पवित्र नदियों में स्नान करने से बाद दान-पुण्य, श्राद्ध व तर्पण का विशेष महत्व होता है।
वृश्चिक संक्रांति पर पूजा का शुभ मुहूर्त
पंडित चंद्रशेखर मलतारे के मुताबिक, कार्तिक माह के शुक्ल पक्ष की चतुर्थी तिथि को वृश्चिक संक्रांति है। ऐसे में पुण्य काल सुबह 06:45 बजे से दोपहर 12:06 बजे तक मान्य होगा। इस अवधि में दान का विशेष फल प्राप्त होगा। वहीं महा पुण्य काल सुबह 06:45 बजे से 08:32 मिनट तक है। इस दौरान विधि-विधान के साथ सूर्य देव की आराधना जरूर करना चाहिए। जिन जातकों की कुंडली में सूर्य देव कमजोर हैं, उन्हें सूर्य देव को प्रसन्न करने से उपाय जरूर करना चाहिए।
सूर्य देव इस समय करेंगे राशि परिवर्तन
हिंदू पंचांग के मुताबिक, कार्तिक माह की शुक्ल पक्ष की चतुर्थी तिथि को रात 1:18 बजे सूर्य देव तुला राशि से निकलकर वृश्चिक राशि में गोचर करेंगे। वहीं 20 नवंबर को अनुराधा और 03 दिसंबर को ज्येष्ठा नक्षत्र में प्रवेश करेंगे। वृश्चिक राशि वालों के लिए यह राशि परिवर्तन काफी फलदायी होगा।
वृश्चिक संक्रांति पर ऐसे करें पूजा, जानें पौराणिक महत्व
पंडित चंद्रशेखर मलतारे के मुताबिक, हर संक्रांति की तरह वृश्चिक संक्रांति का भी विशेष महत्व है। इस दिन सूर्योदय से पहले उठकर स्नान कर लेना चाहिए। सूर्य को अर्घ्य देना चाहिए। गुड़ से बने हलवे का भोग लगाकर ‘ऊं दिनकराय नम:’ मंत्र का पाठ करना चाहिए। गौरतलब है कि संक्रांति काल को दान- पुण्य और श्राद्ध व पितृ तर्पण का काल भी माना जाता है। इस दौरान ब्राह्मणों व गरीबों को भोजन, कपड़े व गौ दान करना चाहिए।