मनीष सिसोदिया को SC ने क्यों नहीं दी जमानत, जानें वजह…

आम आदमी पार्टी (आप) के दूसरे सबसे बड़े नेता और दिल्ली के पूर्व उपमुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया को सुप्रीम कोर्ट से भी झटका लगा है। मनीष सिसोदिया की जमानत याचिका को सबसे बड़ी अदालत ने खारिज कर दिया है। जस्टिस संजीव खन्ना और एसवीएन भट्टी की पीठ ने सोमवार को यह फैसला सुनाया। विशेष अदालत और हाई कोर्ट से याचिका खारिज होने के बाद सिसोदिया ने सबसे बड़ी अदालत का दरवाजा खटखटाया था, लेकिन वहां भी उन्हें निराशा ही मिली। जुलाई में दाखिल की गई याचिका पर सुनवाई पूरी करने के बाद अदालत ने फैसला सुरक्षित रख लिया था। हालांकि, सीबीआई और ईडी को ट्रायल 8 महीने में पूरा करने को कहा गया है। 

जस्टिस संजीव खन्ना और एसवीएन भट्टी की बेंच ने अपने आदेश में कहा, ‘हमने कुछ पक्ष देखे हैं जो संदेहास्पद हैं। लेकिन 338 करोड़ रुपए ट्रांसफर की बात फिलहाल स्थापित होती दिख रही है। इसलिए हमने जमानत याचिका खारिज कर दी है।’ 

सुप्रीम कोर्ट ने सिसोदिया की याचिका सीबीआई और ईडी दोनों केस में खारिज की और 6-8 महीने में ट्रायल पूरा करने का निर्देश दिया। बेंच ने कहा कि यदि अगले 3 महीने में ट्रायल धीमा चला तो याचिकाकर्ता (सिसोदिया) दोबारा जमानत याचिका दायर कर सकते हैं। पीएमएलए के तहत जमानत का प्रावधान धारा 45 के तहत है, जिसमें जमानत देने वाली अदालत को दो शर्तें देखनी होती हैं। पहली यह कि कोर्ट मौजूद आधारों को देखकर माने कि आरोपी दोषी नहीं है और दूसरी यह कि जमानत अवधि के दौरान वह कोई अपराध नहीं करेगा।

सिसोदिया पर आरोप है कि 2021 में आबकारी मंत्री रहते हुए उन्होंने शराब नीति में कुछ ऐसे बदलाव किए जिससे शराब कारोबारियों को फायदा पहुंचाया गया। जांच एजेंसियों का दावा है कि दक्षिण भारत के शराब कारोबारियों (जिन्हें साउथ ग्रुप कहा जा रहा है) का प्रॉफिट मार्जिन बढ़ाया गया जिससे सरकारी खजाने को नुकसान हुआ। प्रिवेंशन ऑफ करप्शन ऐक्ट के तहत दर्ज मुकदमे में ‘आप’ नेता के खिलाफ सीबीआई पहले ही चार्जशीट दायर कर चुकी है। ईडी का दावा है कि लाभार्थी कंपनियों ने 100 करोड़ रुपए की रिश्वत दी और सिसोदिया ने प्रॉफिट मार्जिन को 5 पर्सेंट से 12 पर्सेंट करके अपराध में सहायता की। 338 करोड़ रुपए के ट्रांसफर वाली बात ईडी की शिकायत का हिस्सा है।

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