मसूरी का ‘द रिंक’ होटल आग में जलकर हुआ राख़, जानिए इतिहास…

 पहाड़ों की रानी मसूरी के गौरवमयी इतिहास का साक्षी ‘द रिंक’ होटल बीते रविवार को जलकर राख हो गया। इसी के साथ यहां 133 वर्ष पहले बना उस वक्त का एशिया का सबसे बड़ा वुडन स्केटिंग रिंक भी इतिहास बन गया। 

ब्रिटिश शासनकाल में स्थापित द रिंक में बाइस्कोप और थिएटर साथ-साथ चलते थे। यह शेक्सपियर के कई नाटकों का गवाह बना। 

वर्ष 1940 के बाद हुआ था कुश्ती का आयोजन

वर्ष 1940 के बाद यहां कुश्ती के आयोजन भी हुए। प्रसिद्ध भारतीय पहलवान दारा सिंह (Dara Singh) और आस्ट्रेलिया के किंगकांग (एमिली काजा) के बीच कुश्ती यहीं हुई थी, जिसमें दारा सिंह जीते थे। इसे मसूरी का दुर्भाग्य ही कहा जाएगा कि शहर के दोनों वुडन स्केटिंग रिंक अग्निकांड में समाप्त हो गए। 

वर्ष 1967 में आग की भेंट चढ़ा था  ‘स्टैंडर्ड रिंक’ 

इससे पहले वर्ष 1967 में मालरोड स्थित ‘स्टैंडर्ड रिंक’ (Standard Rink) भी आग की भेंट चढ़ गया था। मालरोड से करीब डेढ़ किमी दूर कुलड़ी बाजार में स्थित ‘द रिंक’ की स्थापना वर्ष 1890 में हुई थी। लकड़ी से बने इसके स्केटिंग फ्लोर का क्षेत्रफल 9,652 वर्ग फीट था। इतिहासकार जयप्रकाश उत्तराखंडी (Jay Prakash Uttarakhandi) बताते हैं कि मसूरी उन दिनों भारत में अंग्रेजों का लोकप्रिय ग्रीष्मकालीन रिसार्ट था। 

मनोरंजन के लिए की थी द रिंक

ऐसे में औपनिवेशिक अभिजात्य वर्ग के मनोरंजन के लिए द रिंक (The Rink) की स्थापना की गई, जिसमें स्केटिंग रिंक के साथ थिएटर और बालरूम भी थे। यहां स्केटिंग, मुक्केबाजी, नाटक, रात्रिभोज समेत अन्य समारोह हुआ करते थे। बिलियर्ड खेलने की सुविधा भी थी।

लगभग 4,000 दर्शकों की क्षमता वाले इस परिसर में विशेष बालकनी और गैलरी के साथ साज-सज्जा के लिए अलग कक्ष बनाए गए थे। साथ में मिनरल वाटर की फैक्ट्री भी लगाई गई थी। 

मसूरी के प्रसिद्ध व्यापारी परिवार पूरन चंद एंड संस के पास था होटल का स्वामित्व

स्वतंत्रता के बाद इसका स्वामित्व मसूरी के प्रसिद्ध व्यापारी परिवार पूरन चंद एंड संस के पास था। जिन्होंने बाद में इसको अत्याधुनिक सुविधाओं से सुसज्जित 30 कमरों वाला होटल बना दिया और इसका नाम ‘द रिंक’ से बदलकर ‘पवेलियन रिंक’ कर दिया। 

इसके बाद वर्ष 2020 में पूरन चंद के पोते राजेश अग्रवाल से बेल्जियम निवासी एनआरआइ उदय प्रताप सिंह ने होटल खरीदा तो नाम बदलकर ‘साइडस रिंक- ए हेरिटेज होटल’ कर दिया। वर्तमान में इसको इसी नाम से जाना जाता था। 

वर्ष 2000 के बाद नहीं हुई रोलर स्केटिंग 

स्वतंत्रता के बाद यहां सन्नाटा पसर गया था। ऐसे में नगर पालिका ने वर्ष 1950 में शरदोत्सव का आयोजन शुरू किया। इसमें नाटक मंचन आदि के साथ रोलर स्केटिंग और रोलर हाकी भी कराई जाती थी। वर्ष 1982 तक यहां शरदोत्सव होता रहा। वर्ष 2000 के बाद यहां रोलर स्केटिंग का कोई आयोजन नहीं हुआ, जबकि रोलर हाकी अंतिम बार वर्ष 2008 में हुई थी। इतिहासकार गोपाल भारद्वाज के अनुसार, गामा पहलवान ने भी यहां आस्ट्रेलिया और सिंगापुर के पहलवानों से कुश्ती की। 

पांच घंटे में बुझ पाई आग 

बताया जा रहा है कि होटल में आग तड़के साढ़े तीन से चार बजे के बीच लगी। होटल के भीतरी हिस्से में 90 प्रतिशत लकड़ी का उपयोग किया गया था। इसलिए आग ने जल्द ही विकराल रूप ले लिया। फायर ब्रिगेड की टीम आइटीबीपी, पुलिस और स्थानीय निवासियों की मदद से पांच घंटे में आग पर काबू पा सकी। लेकिन, तब तक सब कुछ राख हो चुका था। सड़क पर खड़ी दो कारें भी जल गईं। इसके अलावा होटल से सटे आठ मकानों को भी आग से नुकसान हुआ है। 

शार्ट सर्किट के कारण लगी थी आग

इन दिनों होटल में मरम्मत चल रही थी। इस कारण होटल बंद था और भीतर होटल स्वामी उदय प्रताप सिंह, उनके पुत्र अनिरुद्ध और चार श्रमिक ही थे। श्रमिक तो किसी तरह बाहर निकल आए, जबकि आग की लपटों में घिरे उदय और अनिरुद्ध को फायर ब्रिगेड ने टायलेट का शीशा तोड़ कर बाहर निकाला। आग लगने का कारण शार्ट सर्किट बताया जा रहा है।

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