चाणक्य नीति: अन्याय से कमाया धन सिर्फ 10 वर्ष टिकेगा, आखिर आचार्य चाणक्य ने ऐसा क्यों कहा

आचार्य चाणक्य ने राजनीति के साथ-साथ नैतिक जीवन पर भी अपने विचार चाणक्य नीति में बताए हैं। आचार्य चाणक्य ने कहा है कि अन्याय से प्राप्त किए गए धन से न केवल नैतिकता का उल्लंघन होता है, बल्कि व्यक्ति और समाज दोनों के लिए नुकसानदायक होता है। Chanakya Niti में उन्होंने बताया है कि अन्याय से कमाया धन किसी के जीवन में स्थिरता और खुशहाली नहीं ला सकता। यदि कोई व्यक्ति अन्यायपूर्ण मार्गों से धन प्राप्त करता है, तो उसकी संपत्ति कभी स्थायी नहीं हो सकती है। धन को स्थायी रखने के लिए आचार्य चाणक्य ने इन श्लोकों में विस्तार से जिक्र किया है।

सूर्योदये चास्तमिते शयानं विमुञ्चति श्रीर्यदि चक्रपाणिः

Chanakya Niti में आचार्य चाणक्य ने लिखा है कि गंदे कपड़े पहनने वाले, दांतों की सफाई न करने वाले, अधिक भोजन करने वाले, कठोर वचन बोलने वाले, सूर्य उदय होने तथा सूर्यास्त के समय सोने वाले व्यक्ति पर कभी भी देवी लक्ष्मी मेहरबान नहीं होती है। साथ ही ऐसे अवगुणों के साथ जीवन जीने वाले व्यक्ति का स्वास्थ्य, सौंदर्य और शोभा भी धीरे-धीरे खत्म हो जाता है।

अन्यायोपार्जितं द्रव्यं दश वर्षाणि तिष्ठतिप्राप्ते चैकादशे वर्षे समूलं तद् विनश्यति

आचार्य ने आगे इस श्लोक में बताया है कि अन्याय से कमाया हुआ धन अधिक से अधिक 10 वर्ष तक आदमी के पास ठहरता है और 11वां वर्ष शुरू होते ही ब्याज और मूल सहित नष्ट हो जाता है।

त्यजन्ति मित्राणि धनैर्विहीनं दाराश्च भृत्याश्च तं चार्थवन्तंपुनराश्रयन्ते अर्थो हि लोके पुरुषस्य सुहृज्जनाश्च बंधुः

आचार्य चाणक्य के मुताबिक, जब मनुष्य के पास धन नहीं रहता तो उसके मित्र, स्त्री, नौकर-चाकर और भाई-बंधु सब उसे छोड़कर चले जाते हैं। यदि उसके पास फिर से धन-संपत्ति आ जाए तो वे फिर उसका आश्रय ले लेते हैं। संसार में धन ही मनुष्य का बन्धु है। आचार्य ने धन के व्यावहारिक पक्ष को बताते हुए कहा है कि इसी के इर्द-गिर्द सारे संबंधों का ताना-बाना रहता है।

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