सर्जरी करके महिला बना ट्रांसजेंडर व्यक्ति को घरेलू हिंसा अधिनियम के तहत मिलेगी राहत: HC
मुंबई, एक ट्रांसजेंडर व्यक्ति, जो सर्जरी के बाद महिला बनना चुनता है, घरेलू हिंसा अधिनियम के तहत राहत प्राप्त कर सकता है। बॉम्बे हाईकोर्ट ने एक निचली अदालत के उस आदेश को बरकरार रखते यह फैसला दिया है, जिसमें एक व्यक्ति को अपनी अलग रह रही पत्नी को भरण-पोषण का भुगतान करने का निर्देश दिया गया था, जो शुरू में एक ट्रांसजेंडर व्यक्ति थी।
न्यायमूर्ति अमित बोरकर की पीठ ने दिया फैसला
न्यायमूर्ति अमित बोरकर की एकल पीठ ने 16 मार्च के आदेश में, जिसकी एक प्रति शुक्रवार को उपलब्ध थी, कहा कि ‘महिला’ शब्द अब महिलाओं और पुरुषों की बाइनरी तक सीमित नहीं है और इसमें ट्रांसजेंडर व्यक्ति भी शामिल हैं, जिन्होंने अपना लिंग परिवर्तन किया है।
न्यायमूर्ति बोरकर ने कहा कि डीवी अधिनियम की धारा 2 (एफ), जो एक घरेलू संबंध को परिभाषित करती है, लिंग तटस्थ है। इसलिए इसमें व्यक्तियों को शामिल किया गया है, चाहे उनकी यौन प्राथमिकताएं कुछ भी हों। आदेश में कहा गया है कि इसमें कोई संदेह नहीं है कि एक ट्रांसजेंडर व्यक्ति या एक पुरुष या महिला, जो लिंग परिवर्तन ऑपरेशन से गुजरा है, अपनी पसंद के लिंग का हकदार है।
क्या है घरेलू हिंसा अधिनियम के प्रावधानों का उद्देश्य?
आदेश में कहा गया है, “घरेलू हिंसा अधिनियम के प्रावधानों का उद्देश्य उन महिलाओं के अधिकारों का अधिक प्रभावी संरक्षण प्रदान करना है, जो परिवार के भीतर होने वाली किसी भी प्रकार की हिंसा की शिकार हैं।” पीठ ने आगे कहा कि इस तरह के कानून को पारित करने की आवश्यकता इसलिए थी, क्योंकि मौजूदा कानून एक ऐसी महिला को संबोधित करने के लिए अपर्याप्त था, जिसे उसके पति और उनके परिवार द्वारा क्रूरता के अधीन किया गया था।
इसमें कहा गया है कि ‘महिला’ शब्द अब महिलाओं और पुरुषों के बाइनरी तक ही सीमित नहीं है और इसमें ट्रांसजेंडर व्यक्ति भी शामिल हैं, जिन्होंने ‘अपनी लैंगिक विशेषताओं’ के अनुरूप अपने लिंग को बदल लिया है।अदालत ने कहा, “इसलिए मेरी राय में एक ट्रांसजेंडर व्यक्ति जिसने अपने लिंग को महिला में बदलने के लिए सर्जरी करवाई है, उसे घरेलू हिंसा अधिनियम के अर्थ में एक पीड़ित व्यक्ति के रूप में परिभाषित किया जाना चाहिए।”
क्या है पूरा मामला
अपनी याचिका में व्यक्ति ने एक सत्र अदालत के अक्टूबर 2021 के आदेश को चुनौती दी थी, जिसमें एक मजिस्ट्रेट के अदालत के निर्देश को बरकरार रखा गया था, जिसमें उसे अपनी अलग रह रही पत्नी को 12,000 रुपये मासिक रखरखाव का भुगतान करने के लिए कहा गया था, जो शुरू में एक ट्रांसजेंडर व्यक्ति थी। पत्नी ने अलग रह रहे पति के खिलाफ महिला होने के नाते डीवी एक्ट के तहत मुकदमा दर्ज कराया था।
अलग रह रही पत्नी के मुताबिक, वह 2016 में एक ट्रांसजेंडर व्यक्ति से जेंडर रिअसाइनमेंट सर्जरी कराने के बाद महिला बनी। उसी वर्ष, जोड़े ने शादी कर ली, लेकिन दो साल बाद मतभेद पैदा हो गए, जिसके बाद उसने डीवी अधिनियम के तहत गुजारा भत्ता की मांग करते हुए एक मजिस्ट्रेट अदालत के समक्ष एक आवेदन दायर किया।
पति ने हाईकोर्ट में अपनी याचिका में दावा किया कि उसकी पत्नी पीड़ित व्यक्ति की परिभाषा में नहीं आती है, क्योंकि ऐसा अधिकार घरेलू संबंधों में केवल ‘महिलाओं’ को प्रदान किया गया है। पत्नी के वकील वृषाली लक्ष्मण मैनदाद ने तर्क दिया कि सर्जरी के बाद पत्नी ने महिला के रूप में अपने लिंग की पहचान की। पति की याचिका को खारिज करते हुए हाईकोर्ट ने पति को चार सप्ताह के भीतर भरण-पोषण के सभी बकाया को चुकाने का निर्देश दिया।