पाकिस्तान ने इस देश को चुकाया भारी भरकम बकाया, अब खड़ी हुई दूसरी बड़ी मुश्किल

नकदी संकट से बेजार पड़ोसी मुल्क पाकिस्तान ने अंतरराष्ट्रीय जगत में अपनी साख बचाने और डिफॉल्टर होने से खुद को बचाने के लिए भले ही कुवैत का डीजल खरीद बकाया चुकाने का फैसला किया हो लेकिन  भारी भरकम कर्जे की अदायगी के फैसले के साथ ही वह दूसरी मुश्किलों में घिरता नजर आ रहा है।

पाकिस्तान ने मंगलवार को कुवैत को डीजल खरीद भुगतान के कारण होने वाले डिफॉल्ट को टालने के लिए 27 अरब रुपये के पूरक अनुदान को मंजूरी दी है। यह एक ऐसा कदम जो उस के लिए नई मुश्किलें पैदा कर सकता है क्योंकि देश के कुल खर्च को सहमत सीमा के भीतर रखने के प्रयास का वादा उसने अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष (IMF) किया है। संभव है कि इस खर्चे से IMF की नजरें टेढ़ी हो सकती हैं।

पाकिस्तान के अखबार ‘द एक्सप्रेस ट्रिब्यून’ की एक रिपोर्ट के मुताबिक, शहबाज शरीफ कैबिनेट की आर्थिक समन्वय समिति (ECC) ने मंगलवार को कुवैत से डीजल खरीद के बकाए के भुगतान  के लिए 27 अरब रुपये के पूरक अनुदान को मंजूरी दी है। इसके अलावा, गिलगित-बाल्टिस्तान क्षेत्र में गेहूं की कमी को आंशिक रूप से दूर करने के लिए 2.9 अरब रुपये की खरीद योजना को भी अतिरिक्त मंजूरी दी है।

रिपोर्ट में कहा गया है कि कैबिनेट निकाय के दो फैसले अत्यधिक आर्थिक कठिनाइयों को दर्शाते हैं। एक तरफ सरकार को डिफ़ॉल्ट होने से बचने के लिए संघर्ष करना पड़ रहा है, तो दूसरी तरफ इस कदम से दूसरी परेशानियां पैदा हो रही हैं।

हाल ही में कमजोर आर्थिक समुदाय को पेट्रोलियम राहत सब्सिडी देने और गेहूं के आटे की खरीद पर सब्सिडी देने के फैसले पर आईएमएफ ने सरकार से जवाब-तलब किया है। इससे आईएमएफ से मिलने वाली नौवीं किश्त पर संकट के बादल मंडराने लगे हैं।

बता दें कि पिछले सात सालों में पाकिस्तान का चालू खाता घाटा बढ़कर 74.5 अरब डॉलर तक जा पहुंचा है। अखबार ‘डॉन’ की एक रिपोर्ट के मुताबिक, “FY16 से FY22 तक के सात वर्षों में पाकिस्तान का संचयी चालू खाता घाटा 74.5 बिलियन डॉलर हो चुका है, जबकि स्टेट बैंक का विदेशी मुद्रा भंडार इस अवधि के दौरान 3.6 अरब डॉलर तक गिरकर आ चुका है। 

इसका मतलब है कि पाकिस्तान को 70.9 अरब डॉलर की जरूरत है और उसने इस जरूरत को पूरा करने के लिए 65 अरब डॉलर उधार लिए हैं। रिपोर्ट में कहा गया है कि विदेशी निवेश ने मुश्किल से बाहरी घाटे को पूरा किया, इसलिए सरकार सिर्फ उधार लेती रही। चूंकि विदेशी लेनदार उधार देना जारी रखने के लिए अनिच्छुक हैं, इसलिए पाकिस्तान का बाहरी क्षेत्र अब अस्थिर हो गया है और उस पर डिफॉल्टर होने का खतरा मंडरा गया है।

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