जानिए होलिका दहन का शुभ मुहूर्त और पुजा विधि…

वसुधैव कुटुंबकम की भावना से ओतप्रोत भारतीय समाज अपने अंदर आपसी भाईचारे की भावना को भावना को धारण करते हुए अबीर, गुलाल लगाकर तथा रंगों से सराबोर करके पुराने नकारात्मक विचारों को दूर करने के लिए वर्ष के श्रेष्ठ दिन रंगों का त्योहार होली मनाया जाता है। फाल्गुन मास के शुक्ल पक्ष में भद्रा से मुक्त पूर्णिमा तिथि में होलिका जलाई जाती है । तत्पश्चात रंगोत्सव का पर्व आरंभ होता है। 

प्रत्येक वर्ष रंगोत्सव का महान पर्व चैत्र कृष्ण पक्ष प्रतिपदा को मनाई जाती है। व्रत के लिए पूर्णिमा का मान 6 मार्च दिन सोमवार को होगा । क्योंकि 6 मार्च को ही दिन में 3:57 पर पूर्णिमा तिथि आरंभ हो जाएगी । जो 7 मार्च को सायंकाल 5:40 पर ही समाप्त भी हो जाएगी।ऐसे में पूर्णिमा तिथि 6 मार्च की रात में ही प्राप्त होगी ।शास्त्रों के अनुसार होलिका दहन पूर्णिमा तिथि में भद्रा के अनुपस्थिति में किया जाता है। परंतु इस वर्ष मृत्युलोक की भद्रा 6 मार्च दिन सोमवार को दिन में 3:57 से आरंभ होकर रात में 4:49 तक व्याप्त होगा।

ऐसी स्थिति में होलिका दहन पूर्णिमा तिथि 6 मार्च की रात में भद्रा के पुच्छ 12:23 से लेकर 1:35 के मध्य होलिका दहन किया जाना श्रेष्ठ फल प्रदायक हो सकता है। स्नान दान के लिए पूर्णिमा तिथि एवं काशी में रंगों की होली का प्रसिद्ध पर्व 7 मार्च दिन मंगलवार को मनाया जाएगा। 

यद्यपि कि पश्चिमी भारत के पंचांग में कुछ परिवर्तन की स्थिति होने के कारण ही होलिका दहन की दो तिथियां प्राप्त हो रही है परंतु काशी के पंचांगों के आधार पर यदि लिया जाए तो होलिका दहन का सबसे शुभ मुहूर्त 6 तारीख की रात में ही है क्योंकि पूर्णिमा चतुर्दशी युक्त होने पर ही होलिका दहन के लिए ग्राह्य माना जाता है । पूर्णिमा के साथ चैत्र कृष्ण पक्ष प्रतिपदा होने पर शास्त्रों में ग्राह्य नहीं है।

शास्त्र के प्रमाण तथा परंपरा के अनुसार चैत्र कृष्ण पक्ष प्रतिपदा तिथि में रंग की होली रंगोत्सव तथा धुरण्डी का पर्व तदनुसार 8 मार्च दिन बुधवार को काशी के अन्यत्र सर्वत्र मनाया जाएगा । इसीलिए काशी को छोड़ कर  समस्त भारत मे 8 मार्च दिन बुधवार को रंगों का त्योहार मनाया जाएगा । इस दिन होलिका के भस्म को मस्तक पर स्पर्श करा कर आगामी संवत्सर की कुशलता की कामना की जाती है। यह पर्व अपने एवं पराए का भेद मिटा कर अभिमान को दूर कर , स्नेहा पूर्वक स्वच्छ मानसिक विचारों के साथ 8 मार्च मनाया जाएगा।

कुछ पश्चिमी क्षेत्र के पंचांगों की स्थिति देखा जाए तो कहीं-कहीं पर पूर्णिमा तिथि का मान 7 मार्च की रात में 8:00 बजे तक व्याप्त हो रहा है ऐसी स्थिति में 7 मार्च को सायंकाल 8:00 बजे से पहले होलिका दहन किया जा रहा है । यही मूल कारण है कि होलिका दहन के लिए दो दिन प्राप्त हो रहे हैं परंतु काशी के पंचांगों के आधार पर पूर्णिमा तिथि 7 मार्च को दिन में 4:49 पर ही खत्म हो जाने के कारण पूर्णिमा 7 मार्च की रात में भी नहीं मिल रही है। इस तरह की स्थितियां कई बार भी बनी है तो उसका निर्णय यह होता है कि पूर्णिमा का मान अवश्य होना चाहिए पूर्णिमा बीत जाने पर अर्थात चैत्र कृष्ण पक्ष प्रतिपदा के आरंभ हो जाने पर होलिका दहन नहीं किया जाता है।

पं दिवाकर त्रिपाठी पूर्वांचली के अनुसार राशियों के अनुसार रंग और अबीर-गुलाल खरीदने और लगाने से पर्व की शुभता में वृद्धि होती है। 

राशि के अनुसार शुभ रंग:
मेष : लाल और गुलाबी रंग।  
वृष : पीला व हरा रंग।
मिथुन : हरा और पीला रंग। 
कर्क : लाल और पीला रंग।
सिंह : लाल और गेरुआ रंग।
कन्या : हरा रंग का अबीर।
तुला : लाल, नीला और हरा रंग।
वृश्चिक :लाल और पीला रंग।
धनु : लाल और पीला रंग।
मकर: नीला और हरा रंग। 
कुंभ: लाल रंग। 
मीन : पीला और गेरुआ रंग।

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