वास्तुकला और अध्यात्म का अद्भुत संगम है ये मंदिर

क्या इस तरह के वास्तुकला महज संयोग है? इतने संयोग कैसे हो सकते है? अगर कोई इसे महज संयोग का नाम दे तो, धरती पर उससे बड़ा अज्ञानी कोई नहीं है.  यह 12वीं शताब्दी में बना वीरनारायण मंदिर है

हर साल 23 मार्च को सूर्य इस मंदिर के मध्य में आता है, 23 मार्च को सूर्य की स्थिति को देखते हुए इस मंदिर को बनाना अपने आप में एक आश्चर्यजनक वास्तुकला है। लेकिन इसमें हैरानी की बात नहीं है, हमें हमारे पूर्वजों के उस ज्ञान पर गर्व करना है, जिसे मुगलों और आक्रमणकारियों के द्वारा नष्ट करने की लगातार कोशिश की गई, लेकिन इसे नष्ट करना उनके लिए असंभव सा प्रतीत हुआ। क्योंकि जो सत्य है वहीं सनातन है

यह मंदिर वीर नारायण को समर्पित है, यह एक सुंदर होयसला शैली का मंदिर है जो कर्नाटक के चिकमंगलूर जिले के चिकमंगलूर शहर से 28 किमी दूर दक्षिण में स्थित है। यह मंदिर, चेन्‍ना केशव मंदिर से पश्चिम की ओर स्थित है और इसे आर्टिस्टिक इंटीरियर और एक्‍टीरियर के लिए जाना जाता है। इस मंदिर में दो श्राइन है जो एक – दूसरे के आमने सामने स्थित है।

इस मंदिर में एक मंडप भी है जिसमें 37 रास्‍ते बने हुए है। यह मंदिर एक प्‍लेटफॉर्म पर बना हुआ है और यहां बेहद ही खूबसूरत शिलालेख बने हुए है जो मंदिर की बाहरी दीवारों पर उत्‍कीर्ण किए गए है। इस मंदिर की पश्चिमी तरफ की दीवारों पर एक बड़ी और सुंदर सी विजय नारायण की मूर्ति लगी हुई है। इसके अलावा, यहां चेन्‍ना केशवा और लक्ष्‍मी नारायण की मूर्ति भी लगी हुई है। 

यहां घूमने आने वाले पर्यटक यहां आकर भीम, गणेश, शिव, विष्‍णु, ब्रह्मा, सरस्‍वती, पार्वती और भैरव आदि भगवानों की 59 मूर्तियां भी देख सकते है। पर्यटक यहां आकर कई छोटे – छोटे मंदिरों जैसे – सौम्‍यानायकी, केप्‍पे चेन्‍नींगाराया और अंदल आदि में भी दर्शन कर सकते है।

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