प्रेम से खुल जाते हैं बंद दरवाजे भी
अगर मुझसे पूछो, तो भूल जाओ परमात्मा को, भूल जाओ सत्य को। तुम सिर्फ प्रेम को खोजो और शेष सब उसके पीछे चला आएगा। परमात्मा ऐसे बंधा चला आता है प्रेम के पीछे, जैसे छाया तुम्हारे पीछे बंधी चली आती है। लेकिन प्रेम के बिना तुम कुछ भी खोजो, कुछ भी न पा सकोगे, क्योंकि पाने वाला संवेदनशील ही नहीं है। पाने वाले के पास क्षमता और पात्रता नहीं है। पाने वाला बेहोश है… घृणा में, क्रोध में, वैमनस्य में, पाने वाला जहर में दबा है। प्रेम के अमृत से पुलक आएगी।
हर बच्चा पैदा होता है प्रेम को लेकर, इसीलिए तो हर बच्चा प्यारा लगता है। लेकिन, धीरे-धीरे कहीं कुछ गड़बड़ हो जाती है। हर बच्चा प्यारा लगता है। हर बच्चा सुंदर है। तुमने कोई कुरूप बच्चा देखा? बच्चे का सौंदर्य जैसे उसके शरीर पर नहीं, बल्कि किसी भीतरी क्षमता पर निर्भर है। बच्चे का दीया अभी जल रहा है। अभी उसके रोएं-रोएं से चारों तरफ से प्रेम की रोशनी पड़ती है। अभी वह जिस तरफ देखता है, वहीं प्रेम है। पर जैसे-जैसे बड़ा होगा, वैसे-वैसे प्रेम खोने लगेगा। हम सहायता करते हैं कि प्रेम खो जाए। हम उसे प्रेम करना नहीं सिखाते, प्रेम से सावधान रहना सिखाते हैं…क्योंकि प्रेम बहुत खतरनाक है।
हम बच्चे को सिखाते हैं…संदेह करना, क्योंकि इस दुनिया में संदेह की जरूरत है, नहीं तो लोग लूट लेंगे। धोखाधड़ी है, बेईमानी है, प्रपंच है…अगर तुम संदेह न कर सके तो कोई भी तुम्हें लूट लेगा। चारों तरफ लुटेरे हैं। हम चारों तरफ के परमात्मा का ध्यान नहीं रखते। हम चारों तरफ के लुटेरों का ध्यान रखते हैं। हम लुटेरों के लिए तैयार करते हैंबच्चों को, तो लुटेरों के लिए तैयार करना हो तो प्रेम नहीं सिखाया जा सकता, क्योंकि प्रेम खतरनाक है।