वेटनरी रिसर्च इंस्टीट्यूट यानी आईवीआरआई को उत्तराखंड से उड़ीसा ले जाने की तैयारी

हल्द्वानी : पशु चिकित्सा में अपने रिसर्च यानी अनुसंधानों के कारण देश-दुनिया में पहचान बना चुका भारतीय पशु चिकित्सा अनुसंधान संस्थान यानी इंडियन वेटनरी रिसर्च इंस्टीट्यूट (आईवीआरआई) को अब उत्तराखंड की जगह उड़ीसा ले जाने की तैयारी हो रही है. संस्थान में भीतरखाने चल रही तैयारियों की भनक जैसे ही नैनीताल से सांसद और केंद्र में रक्षा और पर्यटन राज्यमंत्री अजय भट्ट को लगी उन्होंने इस पर कड़ा ऐतराज जाहिर किया है. यही नहीं अजय भट्ट ने केंद्रीय कृषि मंत्री नरेन्द्र सिंह तोमर से भी मुलाकात की है और केंद्रीय संस्थान को शिफ्ट करने के फैसले का कड़ा विरोध दर्ज किया है.

मुक्तेश्वर के लिए है आईवीआरआई का महत्व – इस शोध संस्थान की स्थापना साल 1889 में इंपीरियल बैक्टीरियोलॉजिकल लैबोरेट्री के नाम से पुणे में की गई थी. लेकिन, तत्कालीन अंग्रेज वैज्ञानिकों ने पुणे को इस पशु-चिकित्सा अनुसंधान के लिए ठीक नहीं माना, जिसके बाद साल 1893 में इस रिसर्च इंस्टीट्यूट को मुक्तेश्वर में शिफ्ट करने का फैसला लिया गया. जिसके लिए मुक्तेश्वर की सबसे ऊंची चोटी और घने जंगलों के बीच तीन हजार एकड़ जमीन इस रिसर्च इंस्टीट्यूट के लिए सलेक्ट हुई.

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साल 1925 में इस इंस्टीट्यूट का नाम बदलकर इंपीरियल इंस्टीट्यूट ऑफ वेटनरी रिसर्च कर दिया गया, जिसे आजादी के बाद इंडियन वैटनरी रिसर्च इंस्टीट्यूट का नाम दे दिया गया. आज कुल मिलाकर 3450 एकड़ में फैले आवीआरआई कैंपस में गाय से लेकर बकरी जैसे जानवरों को लेकर रिसर्च होती है. इन जानवरों में होने वाले वायरल इंफेक्शन संबंधी महत्वपूर्ण रिसर्च होते हैं. लेकिन, अब इस संस्थान को यहां से बंद कर उड़ीसा ले जाने की तैयारी हो रही है. जिसका स्थानीय स्तर पर विरोध भी शुरू हो गया है.

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