उच्च हिमालयी जोन में भूकंप-भूस्खलन का खतरा, शोध में खुले राज

उत्तराखंड का उच्च हिमालयी जोन भूकंप और भू-स्खलन के लिए अति संवेदनशील बना हुआ है। प्रदेश के विभिन्न स्थानों पर लगातार आ रहे छोटे भूकंप इसकी चेतावनी दे रहे हैं। वैज्ञानिकों ने कुमाऊं और गढ़वाल रीजन में बड़े भूकंप की भी आशंका जताई है। कुमाऊं विश्वविद्यालय के वैज्ञानिकों ने उत्तराखंड में 10 से अधिक संवेदनशील स्थानों से आंकड़े एकत्र कर ये रिपोर्ट तैयार की है।

शोध में भूकंप को लेकर और भी चिंतित करने वाले तथ्य सामने आए हैं। कुमाऊं विवि के शोधकर्ताओं की टीम ने उत्तराखंड में 11 से अधिक स्थानों पर भूकंपमापी यंत्रों के आंकड़े जुटाकर अध्ययन किया। भू-वैज्ञानिक डॉ.संतोष जोशी बताते हैं 1991 से अब तक प्रदेश में तीन हजार से अधिक भूकंप आए हैं। राहत की बात ये है कि सभी 6.5 मैग्नीट्यूड से कम तीव्रता के थे और जमीन के भीतर 8 से 25 किमी तक ही इनका असर था।

इस कारण बड़ा नुकसान नहीं हुआ, लेकिन भविष्य में बड़ा भूकंप आ सकता है। बागेश्वर का कपकोट, पिथौरागढ़, धारचूला, चमोली, उत्तरकाशी और रुद्रप्रयाग को लेकर शोधकर्ताओं ने चिंता जाहिर की है। ये क्षेत्र भूकंप की दृष्टि से अति संवेदनशील बने हुए हैं।

ऐसे में शासन-प्रशासन को समय से इसके नुकसान से निपटने को निर्णय लेने होंगे। शोधकर्ताओं ने चिंता जाहिर की है। ये क्षेत्र भूकंप की दृष्टि से अति संवेदनशील बने हुए हैं। ऐसे में शासन-प्रशासन को समय से इसके नुकसान से निपटने को निर्णय लेने होंगे।

यहां लगे हैं भूकंपमापी यंत्र
कालाखेत, रानीखेत, मासी, देवाल, धारचूला, पांगला, पिथौरागढ़, बागेश्वर, फरसाली, मुनस्यारी, तोली, भराड़ीसैंण और भू-गर्भ विज्ञान विभाग कुमाऊं विवि, नैनीताल।

हर दो सौ साल में बड़े भूकंप की आशंका
भू-वैज्ञानिकों के अनुसार संवदेनशील क्षेत्रों में हर दो सौ साल में एक बड़ा भूकंप आता है। वर्ष 1802 में उत्तरकाशी में बड़ा भूकंप आया था। जिसमें कई मकान ढह गए। इस दौरान बड़ी जनहानि भी हुई। इसके बाद से बड़ा भूकंप नहीं आया है। अब बड़े भूकंप की संभावना बनी हुई है।

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