नीतीश कुमार और जगदानंद सिंह की सियासी अदावत में उलझी महागठबंधन की राजनीति! इनसाइड स्टोरी

पटना : बिहार राजद अध्यक्ष जगदानंद सिंह प्रदेश के बड़े नेता हैं. कहा जाता है कि वे कभी अपने सिद्धांतों से समझौता नहीं करते. पार्टी में रहते हुए उन्होंने अपने परिजनों के खिलाफ भी चुनाव प्रचार किया है और जरूरत पड़ने पर अपने पार्टी नेताओं के खिलाफ भी बोलने से पीछे नहीं हटे. बिहार की राजनीति के जानकार नीतीश कुमार से उनकी दूरी के बारे में जानते हैं. कहा तो जाता है कि वे राजद-जदयू की सरकार के विरोध में थे. इस बीच अब खबर है कि वे राजद की अंदरूनी राजनीति से भी वे आहत हैं. चर्चा तो यह भी है कि वे जल्दी ही लालू यादव से मिलकर वे इस्तीफा दे सकते हैं. मगर सवाल यह कि वे ऐसा क्यों करने जा रहे हैं?

दरअसल, इसके पीछे की बात जो सामने आ रही है वह यह कि उनके पुत्र सुधाकर सिंह को नीतीश मंत्रिमंडल से हटाए जाने से वे बेहद आहत हैं. इसके बाद उनका एक बयान काफी सुर्खियों में रहा था जिसमें उन्होंने यह कहा कि ‘प्रश्न उठाने से नहीं होता, बलिदान भी देना होता है.’ इस मसले पर सुधाकर सिंह ने भी कहा था- मैं राष्ट्रीय जनता दल (राजद) प्रमुख लालू प्रसाद यादव के निर्देश पर मंत्री बना था और उनके कहने पर ही पद भी इस्तीफा दिया है.

हालांकि, चर्चा तो यह भी है कि बिहार के डिप्टी सीएम तेजस्वी यादव ने नीतीश कुमार के दबाव के बाद सुधाकर सिंह से इस्तीफा देने के लिए कहा था. जाहिर है इस मुद्दे में सीएम नीतीश कुमार का नाम भी शामिल है जिससे जगदानंद सिंह पहले तो असहज हुए और इसके बाद आहत बताए जा रहे हैं. राजनीति के जानकार बताते हैं कि बिहार के ताजा राजनीतिक घटनाक्रम के पीछे लालू, नीतीश और जगदानंद सिंह के बीच की सियासी समीकरण की एक बड़ी भूमिका है.

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दरअसल, एक वक्त तो ऐसा भी था जब नीतीश कुमार और जगदानंद सिंह बेहद करीब माना जाते थे. पहली बार जगदानंद सिंह 1990 में लालू मंत्रिमंडल में शामिल भी इसलिए हो पाए थे क्योंकि नीतीश कुमार ने उनकी पैरवी लालू यादव से की थी. लालू मंत्रिमंडल में जगदानंद सिंह इतने पावरफुल थे कि कई विभागों का जिम्मा इनके पास था. धीरे-धीरे जगदानंद सिंह लालू यादव के इतने करीब होते चले गए कि नीतीश कुमार से उनकी दूरी बढ़ गई.

राजनीति के इसी क्रम में जब लालू यादव का कद बढ़ता गया और राज्य की सत्ता के साथ ही केंद्र में वे किंगमेकर कहलाने लगे तो नीतीश कुमार और लालू दूरी बढ़ती गई. इसी बीच 1994 में नीतीश कुमार स्वयं लालू यादव से अलग हो गए. उन्होंने कई बार जगदानंद सिंह को अपने पाले में लाने का प्रयास भी किया, लेकिन जगदानंद सिंह टस से मस नहीं हुए. दूरी बढ़ी तो दोनों के बीच सियासी अदावत भी बढ़ती चली गई.

इन दोनों नेताओं के बीच सियासी तौर पर दूरी और बढ़ती गई. यह दूरी तल्खी में तब बदल गई जब जगदानंद सिंह ने बाढ़ संसदीय क्षेत्र से नीतीश कुमार के विरुद्ध चुनाव लड़ रहे विजय कृष्ण का प्रचार भी किया. वर्ष 1996, 1998, 1999 और 2004 के लोकसभा चुनाव में जगदानंद सिंह का विजय कृष्ण के लिए प्रचार करने से नीतीश कुमार लगातार परेशान रहे. वे खुलकर तो कुछ नहीं कहते, लेकिन उनके हाव भाव से कई बार यह जाहिर होने लगा कि वे जगदानंद सिंह को लेकर सहज नहीं हैं.

सिर्फ नीतीश कुमार ही नहीं, जगदानंद सिंह भी नीतीश कुमार को लेकर अक्सर असहज ही लगे. जब जगदानंद सिंह के बेटे सुधाकर सिंह का चावल घोटाला में नाम आया तो इसके लिए नीतीश कुमार को ही परोक्ष रूप से जिम्मेदार माना. हाल में भी जब महागठबंधन की सरकार बनने की बात हो रही थी तो जगदानंद सिंह अंतिम तक इसे नकारते रहे थे. लेकिन, राज्य में महागठबंधन की सरकार बन गई और लालू यादव के बेटे तेजस्वी यादव डिप्टी सीएम बन गए.

अब जगदानंद सिंह के सामने मजबूरी थी कि वे सहज दिखें, लेकिन अंदर जो टीस थी वह अभी खत्म नहीं हुई थी. राजनीति के जानकार इस तल्खी को लेकर एक और वाकया बताते हैं जब बिहार में महागठबंधन की सरकार बनी और नीतीश कुमार लालू प्रसाद से मिलने राबड़ी देवी के आवास गए तो वहां उपस्थित सारे लोग खड़े हो गए, मगर जगदानंद सिंह बैठे ही रहे. साफ है कि जगदानंद सिंह के तेवर नीतीश कुमार को लेकर अब भी नरम नहीं पड़े थे.

बहरहाल, अब बिहार में सियासी समीकरण बदले हुए हैं और लालू यादव अपने बेटे तेजस्वी यादव को सीएम पद की कुर्सी पर हर हाल में पहुंचाना चाहते हैं. मगर यह भी एक हकीकत है कि लालू यादव और जगदानंद सिंह के बीच के संबंध समय की कसौटी पर खरे उतरे हैं. ऐसे में आने वाले समय में बिहार की राजनीति में लालू यादव, नीतीश कुमार और जगदानंद सिंह के बीच के सियासी समीकरण कैसे रहेंगे; यह देखना बेहद दिलचस्प होगा.

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