व्लादिमीर पुतिन देश में ही घिरे, यूक्रेन के जवाबी हमले से बैकफुट पर रूसी सेना

मॉस्को कीव: रूस ने एक तरफ यूक्रेन के डोनेत्स्क, लुहांस्क समेत 4 इलाकों को अपने देश में शामिल करने के लिए कानून को मंजूरी देकर कदम आगे बढ़ाए हैं तो वहीं यूक्रेन भी जवाबी हमले तेज कर रहा है। इन हमलों के चलते रूसी सेना को बड़े पैमाने पर नुकसान झेलना पड़ रहा है। यही नहीं इसकी वजह से रूसी सरकार में भी शीर्ष स्तर पर मतभेद पैदा हो गए हैं। इन झटकों से रूसी सेना की प्रतिष्ठा को भी धक्का पहुंचा है, जिसे दुनिया की सबसे ताकतवर सेनाओं में से एक माना जाता है। इसके चलते व्लादिमीर पुतिन घिरते दिख रहे हैं। पश्चिमी देशों से मिले हथियारों के दम पर यूक्रेनी सेना ने बीते महीने खारकीव शहर के बड़े इलाके पर अपना कब्जा जमा लिया था। अब उसका अभियान दूसरे शहरों तक भी पहुंच रहा है।

यूक्रेनी सेना ने हाल ही में सिटी ऑफ लिमैन पर भी कब्जा जमा लिया है, जिसे लॉजिस्टिक हब के तौर पर जाना जाता है। इसके अलावा दक्षिणी क्षेत्र में भी यूक्रेन की सेना तेजी से कदम बढ़ा रही है और कई गांवों पर कब्जा वापस लिया है। खेरसन शहर पर भी यूक्रेन की सेना दोबारा काबिज हो गई है। यूनिवर्सिटी ऑफ सेंट एंड्रयूज में स्ट्रेटेजिक स्टडीज के प्रोफेसर फिलिप्स ओ. ब्रायन ने कहा कि रूसी सेना के लिए अब टिकना मुश्किल हो गया है। उसके हथियारों को यूक्रेनी सेना तबाह कर रही है। लंबे समय से मोर्चे पर डटे रहने से रूसी सैनिक थक गए हैं और अब यूक्रेन के आगे टिकना मुश्किल हो रहा है।

कहा तो यह भी जा रहा है कि यूक्रेन की सेना आगे बढ़ते हुए क्रीमिया के नजदीक भी पहुंच सकती है, जिसका रूस ने 2014 में विलय कर लिया था। शायद बैकफुट पर जाने के चलते ही व्लादिमीर पुतिन ने नया आदेश जारी किया है, जिसके तहत 3 लाख रिजर्व सैनिकों को शामिल किया जाना है। इसमें से 2 लाख लोग शामिल भी हो चुके हैं। ऐसे में रूस की रणनीति को लेकर भी कयास लग रहे हैं। इसी साल फरवरी के आखिरी सप्ताह में रूसी सेना ने यूक्रेन पर हमला बोला था। तब से अब तक 8 महीने बीत चुके हैं, लेकिन अब तक जंग जारी है। कहा जा रहा है कि रूसी सैनिक अब थक चुके हैं, जबकि यूक्रेन को पश्चिमी देशों से मिले हथियारों से नई ताकत मिली है।

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इंटेलिजेंस में भी यूक्रेनी सेना पड़ रही भारी, अमेरिका से बड़ी मदद

यूक्रेन और रूस के युद्ध पर नजर रखने वालों का कहना है कि सैनिकों की संख्या कम हो रही है। इसके अलावा अलग-अलग यूनिट्स के बीच समन्वय भी कमजोर है। सप्लाई भी प्रभावित है। यही नहीं विपरीत हालातों में रूसी सेना के जवानों का भी हौसला गिरता जा रहा है। इस युद्ध में इंटेलिजेंस भी एक बड़ा मसला है। एक तरफ यूक्रेन को अमेरिका और अन्य नाटो देशों की ओर से इंटेलिजेंस मिल रही है और वह रूसी सेना के ठिकानों को टारगेट कर रही है। वहीं रूसी सेना इंटेलिजेंस में भी कमजोर पड़ती दिख रही है।

तालमेल में कमी, परमिशन मिलने में देरी से भी बढ़ी टेंशन

रूसी सेना की ओर से जब तक किसी टारगेट को फिक्स किया जाता है और हमले के लिए परमिशन मिल पाती है, तब तक देर हो चुकी होती है। इसके अलावा ड्रोन्स की कमी का भी रूसी सेना सामना कर रही है। इससे उसका निगरानी तंत्र प्रभावित हुआ है और वह किसी भी टारगेट को फिक्स नहीं कर पा रही है।

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