मोकामा सीट पर महागठबंधन तो गोपालगंज में बीजेपी मजबूत, किसकी होगी जीत?
पटना : बिहार की दो विधानसभा सीटों पर उपचुनाव की तारीखों का ऐलान हो गया है। मोकामा और गोपालगंज विधानसभा सीट पर उपचुनाव के लिए 3 नवंबर को वोटिंग होगी और 6 तारीख को नतीजे आएंगे। बीजेपी और महागठबंधन में शामिल जेडीयू-आरजेडी समेत अन्य पार्टियों ने बिहार उपचुनाव के लिए कमर कस ली है। मौजूदा समीकरणों के मुताबिक मोकामा में महागठबंधन और गोपालगंज में बीजेपी मजबूत दिख रही है। नीतीश कुमार के बीजेपी का साथ छोड़कर तेजस्वी यादव से हाथ मिलाने के बाद हो रहे दोनों सीटों पर उपचुनाव काफी रोचक होने वाले हैं।
मोकामा विधानसभा सीट पर नजर डालें तो इसे आरजेडी का गढ़ माना जाता है। जेल में बंद बाहुबली नेता अनंत सिंह का इस क्षेत्र में खासा प्रभाव है। वैसे तो मोकामा पटना जिले में आता है लेकिन इसका लोकसभा क्षेत्र मुंगेर लगता है। मुंगेर से वर्तमान में जेडीयू के राष्ट्रीय अध्यक्ष ललन सिंह सांसद हैं। उन्होंने 2019 के लोकसभा चुनाव में अनंत सिंह की पत्नी नीलम देवी को ही हराया था।
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अनंत सिंह के करीबी को ही मिलेगा टिकट?
मोकामा में अनंत सिंह का दबदबा अब भी कायम है। 2020 के विधानसभा चुनाव में उन्होंने आरजेडी के टिकट पर जीत दर्ज की थी। इससे पहले वे निर्दलीय भी जीतकर विधायक बन चुके हैं। पिछले दिनों अनंत सिंह को एके 47 मामले में सजा होने के बाद उनकी विधानसभा सदस्यता रद्द कर दी गई थी, इसके बाद मोकामा सीट खाली हो गई। अब उपचुनाव में आरजेडी अनंत सिंह के किसी करीबी को ही यहां से उम्मीदवार बना सकती है। मोकामा से महागठबंधन में आरजेडी का उम्मीदवार उतरना तय माना जा रहा है, उसका मुकाबला बीजेपी से हो सकता है। आरजेडी अनंत सिंह की पत्नी नीलम देवी पर ही दांव खेल सकती है। वहीं, बीजेपी को यह सीट जीतने के लिए बहुत जद्दोजहद करनी होगी।
गोपालगंज सीट बीजेपी का गढ़, महागठबंधन कैसे लगाएगा सेंध?
मोकामा के साथ गोपालगंज सदर विधानसभा सीट पर भी उपचुनाव होना है। पूर्व मंत्री और बीजेपी नेता सुभाष सिंह के निधन के बाद यह सीट खाली हुई थी। सुभाष सिंह यहां से लगातार चार बार बीजेपी के टिकट पर चुनाव जीत चुके हैं। इस सीट को बीजेपी का गढ़ माना जाता है। बीजेपी दिवंगत सुभाष सिंह के परिवार से या उनके किसी करीबी को टिकट दे सकती है। पार्टी को सहानुभूति लहर का फायदा मिलने की उम्मीद है।
वहीं, दूसरी ओर महागठबंधन को बीजेपी के इस गढ़ में सेंध लगाने के लिए काफी मेहनत करनी पड़ेगी। यहां अक्सर कांग्रेस और बीजेपी के बीच ही मुकाबला देखने को मिलता है। ऐसे में महागठबंधन की ओर से कांग्रेस के किसी नेता को संयुक्त उम्मीदवार बनाकर बीजेपी के खिलाफ उतारा जा सकता है।