‘योग भारत की प्राचीन परंपरा की अमूल्य देन है’,यह मन और शरीर की एकता का प्रतीक है:PM मोदी
दिल्लीः प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 27 सितंबर 2014 को संयुक्त राष्ट्र महासभा में योग की महत्ता को लेकर अपने भाषण के दौरान कहा था, ‘योग भारत की प्राचीन परंपराकी अमूल्य देन है, यह मन और शरीर की एकता का प्रतीक है. विचार और क्रिया, संयम और पूर्ति, मनुष्य और प्रकृति के बीच सामंजस्य, स्वास्थ्य और कल्याण के लिए एक समग्र दृष्टिकोण है. यह व्यायाम के बारे में नहीं है, बल्कि अपने आप को, दुनिया और प्रकृति के साथ एकता की भावना की खोज करने के लिए है. अपनी जीवन शैली को बदलकर और चेतना पैदा करके, यह भलाई में मदद कर सकता है. आइए हम एक अंतरराष्ट्रीय योग दिवस को अपनाने की दिशा में काम करें.’
दरसल, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का यह भाषण योग को अंतरराष्ट्रीय महत्व और पहचान दिलवाने की कवायद का हिस्सा था, जिसके बाद 21 जून को अंतरराष्ट्रीय योग दिवस के तौर पर पूरे विश्व में मनाया जा रहा है. इतिहास के झरोखे में अगर योग को देखा जाए तो इसकी परंपरा अत्यंत प्राचीन है और इसकी उत्पत्ति हजारों वर्ष पहले हुई थी. ऐसा माना जाता है कि जब से सभ्यता शुरू हुई है तभी से योग किया जा रहा है. योग विद्या में शिव को ‘आदि योगी’ तथा ‘आदि गुरु’ माना जाता है. भगवान शंकर के बाद वैदिक ऋषि-मुनियों से ही योग का प्रारंभ माना जाता है. बाद में कृष्ण, महावीर और बुद्ध ने इसे अपनी तरह से विस्तार दिया.
पतंजलि ने इसे मौजूदा तौर पर सुव्यवस्थित रूप दिया. इस रूप को ही आगे चलकर सिद्धपंथ, शैवपंथ, नाथपंथ, वैष्णव और शाक्त पंथियों ने अपने-अपने तरीके से विस्तार दिया. इसके बाद आज पीएम नरेंद्र मोदी योग के एक मायने में अग्रदूत हैं, जिन्होंने इसे अंतरराष्ट्रीय पहचान दिलाई और आज पूरा विश्व 21 जून को अंतरराष्ट्रीय योग दिवस के तौर पर मना रहा है. अंतरराष्ट्रीय योग दिवस को 21 जून को मनाने को लेकर पीएम नरेंद्र मोदी ने कहा कि यह तिथि उत्तरी गोलार्ध में वर्ष का सबसे लंबा दिन था और दक्षिणी गोलार्ध में सबसे छोटा है. इसका दुनिया के कई हिस्सों में विशेष महत्व है. और इसलिए उन्होंने इस दिन को योग दिवस के तौर पर प्रस्तावित किया था.