ममता का प्रेरणा दीप
जाने-माने कवि बहरामजी मलबारी युवावस्था में गलत संगत के कारण दुर्व्यसनों से ग्रस्त हो गए थे। रात को बहुत देरी से घर पहुंचते, इस बात पर कभी-कभी कलह भी हो जाती थी। उनकी मां हैजे से ग्रस्त बिस्तर पर पड़ी थीं।
मृत्यु से कुछ देर पूर्व तक वह अपने पुत्र की प्रतीक्षा कर रही थीं। आधी रात के बाद जब बेटा पहुंचा तो मां ने उसकी ओर देखा तथा बोली, ‘मैं अंतिम बात कहना चाहती हूं।
तुम जीवन में सुधार लाओ, तभी मेरी आत्मा को शांति मिलेगी।’ ये शब्द कहते ही मां ने प्राण त्याग दिए। मां के इन अंतिम शब्दों ने बहरामजी का जीवन बदल दिया।
उन्होंने संकल्प लिया कि वह अपना हर पल सात्विकता के साथ बिताएंगे। प्रत्येक महिला में अपनी मां के दर्शन करेंगे। बहरामजी ने तमाम व्यसन त्याग दिए।
साहित्य सेवा में जुट गए। उन्होंने अपनी मां की स्मृति में महिलाओं के लिए सेवा सदन की स्थापना कर तमाम संपत्ति उसके नाम कर दी। वे कहा करते थे, ‘ममतामयी मां का अंतिम वाक्य मेरे लिए प्रेरणा दीप बन गया है।’