अनुरोध की गरिमा

एक बार आचार्य विनोबा भावे जी भूदान आंदोलन के अंतर्गत गांव-गांव जाकर भूमि दान का अनुरोध कर रहे थे। उनके साथ स्वयंसेवक युवाओं का दल था। एक जगह रास्ता भटक गये तो विनोबा एक खेत पर जाकर किसान से हाथ जोड़कर सही मार्ग पूछने लगे। किसान बहुत ही उत्साहित होकर बताने लगा।

जब सही मार्ग मिल गया तो चलते-चलते युवकों ने विनोबा जी से पूछा कि आप इतनी याचना क्यों कर रहे थे तो यह सुनकर विनोबा जी बोले, ‘हम किसी भी अनजान से अपना हेतु सिद्ध करने के लिए उससे कठोर या आदेश वाले वचन कदापि नहीं बोलने चाहिए। हमें अपनी बात बहुत विनम्र अनुरोध के रूप में रखनी चाहिए और मधुर बोली में ही बात करनी चाहिए।

किसी से कोई बात पूछते समय या किसी से मदद लेते समय हमें स्वयं को अधिक महत्वपूर्ण या ज्ञानवान दिखलाने का प्रयास नहीं करना चाहिए। अपना आचरण एकदम ऐसा रखना चाहिए कि सामने वाला सम्मानित अनुभव करे। उसे लगे कि वह कोई महत्वपूर्ण कार्य करने जा रहा है।’

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