महंगी होने लगी चीनी, गन्ना उत्पादन घटने का दिख रहा प्रभाव

गन्ने का कम उत्पादन, रिकवरी दर में गिरावट, निर्यात की अनुमति और एथनाल में अत्यधिक इस्तेमाल के चलते चीनी की कीमतें चढ़ने लगी हैं। आकलन है कि उपभोक्ताओं की जेब पर भी बोझ पड़ना तय है। घरेलू मार्केट में अभी से ऐसा दिखने भी लगा है। पिछले एक महीने के दौरान चीनी की कीमतों में लगभग दो प्रतिशत की तेजी आई है। आगे भी राहत की उम्मीद नहीं है।

गन्ने के अभाव में मध्य फरवरी में 77 चीनी मिलें बंद हो चुकी हैं। चीनी उत्पादन में अब तक लगभग 50 लाख टन से अधिक की कमी होने का अनुमान है। ऑल इंडिया शुगर ट्रेड एसोसिएशन को इससे भी ज्यादा कमी होने की आशंका है।

चीनी मिलों के धड़ाधड़ गिर रहे शटर

नेशनल फेडरेशन ऑफ को-ऑपरेटिव शुगर फैक्ट्रीज लिमिटेड (एनएफसीएसएफ) की रिपोर्ट में दिसंबर में ही आशंका जताई गई थी कि चीनी मिलों को गन्ने के संकट का सामना करना पड़ सकता है। प्रमुख गन्ना उत्पादक राज्यों में महाराष्ट्र की 30 और कर्नाटक की 34 चीनी मिलें 15 फरवरी के पहले ही बंद हो गई हैं।

तमिलनाडु में भी चार चीनी मिलों को बंद कर दिया गया है। इसी तरह उत्तर प्रदेश, तेलंगाना, उत्तराखंड एवं गुजरात में भी चीनी मिलों के शटर धड़ाधड़ गिरने लगे हैं, जबकि सामान्य तौर पर चीनी मिलें मार्च-अप्रैल तक चलती हैं।

गन्ने के अभाव में कुल चीनी उत्पादन में लगभग 12 से 14 प्रतिशत की कमी का अनुमान किया जा रहा है। पिछले वर्ष 319 लाख टन चीनी का उत्पादन हुआ था, किंतु इस वर्ष अभी तक 270 लाख टन चीनी उत्पादन की उम्मीद है। इस आंकड़ें के और भी नीचे जाने की बात कही जा रही है। चीनी उत्पादन में जब इतनी बड़ी गिरावट आएगी तो मूल्य पर असर पड़ना तय है।

खराब फसल का चीनी रिकवरी दर पर असर

चीनी उत्पादन में कमी का एक और बड़ा कारण रिकवरी दर में गिरावट को माना जा रहा है। गन्ने की खराब फसल का असर चीनी रिकवरी दर पर पड़ा है। पिछले वर्ष फरवरी तक 9.87 प्रतिशत औसत रिकवरी दर थी, जो इस बार सिर्फ 9.09 प्रतिशत रह गई है।

बेमौसम बारिश के चलते सबसे अधिक असर कर्नाटक और महाराष्ट्र पर पड़ा है। कर्नाटक में रिकवरी दर 9.75 प्रतिशत से गिरकर 8.50 प्रतिशत पर आ गई है। इसी तरह उत्तर प्रदेश में पिछले वर्ष 10.20 प्रतिशत रिकवरी दर थी जो इस बार 9.30 प्रतिशत पर आ गई है।

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