बिहार: चुनाव से पहले तेजस्वी यादव हुए अलर्ट, लालू के फॉर्मूले के साथ बनाई नई स्ट्रेटजी

सामाजिक न्याय की अवधारणा ने लालू प्रसाद यादव (Lalu Yadav) को एक दौर में बिहार की राजनीति का नायक बना दिया। वे गरीबों व पिछड़ों के मसीहा तक बताए गए। हालांकि, जंगल-राज व भ्रष्टाचार के आरोपों से उनकी छवि धूमिल भी हुई, लेकिन उसी अवधारणा के बूते राजद की राजनीति चलती रही।

अब कमान अघोषित रूप से तेजस्वी यादव (Tejashwi Yadav) के हाथ में है, जो सामाजिक अवधारणा पर आर्थिक न्याय का रंग चढ़ाने में लगे हैं। लगभग एक दशक की सक्रियता ने राजनीति में तेजस्वी को परिपक्व बनाया है, फिर भी स्थायी भाव वाली सत्ता की कामना अभी पूरी नहीं हुई। ऐसे में तेजस्वी इस बार सचेत हैं।

नई पीढ़ी को भी साधेंगे तेजस्वी

तेजस्वी यादव समझ चुके हैं कि लालू के बनाए समीकरण से राजद को अधिकतम लाभ प्राप्त हो चुका है। राजनीति अब नए दौर में है और युवा मतदाता निर्णायक भूमिका में। ऐसे में पुराने समीकरण से विचलित हुए बिना नई पीढ़ी को भी साधना होगा। आर्थिक न्याय का नारा इसी उपक्रम में है, जिसे वे बिहार के वास्तविक विकास का आधार बता रहे।

दिल्ली में बिहार नीति संवाद का आयोजन

नकदी हस्तांतरण व प्रत्यक्ष लाभ के वादों के साथ तेजस्वी नौकरी-रोजगार, डोमिसाइल नीति आदि का दिलासा दे रहे  हैं। इसी उपक्रम में दिल्ली में बिहार नीति संवाद का आयोजन हुआ। ओपिनियन लीडर की भूमिका वाले अति-पिछड़ा समाज के बुद्धिजीवियोंं ने उस मंच से बिहार के विकास पर विचार-विमर्श किया।

राजद सांसद ने क्या कहा?

बिहार नीति संवाद का संयोजन करने वाले सांसद सुधाकर सिंह कहते हैं कि हम जनता की जरूरतों और बिहार के विकास का एक ब्लू-प्रिंट बना रहे हैं। उसमें पढ़ाई, कमाई, दवाई, सुनवाई और कार्रवाई की रूप-रेखा होगी। हालांकि, इसे वे जुमला नहीं, राजद का वादा बताते हैं। चर्चा है कि युवाओं, महिलाओं और गरीबों को आकर्षित करने के उद्देश्य से आगे ऐसे वादों की झड़ी लगने वाली है।

तेजस्वी ने किया दो विधानसभा चुनाव का सामना

राजनीति में पदार्पण के बाद तेजस्वी का सामना विधानसभा के दो चुनावों से हो चुका है। 2020 के चुनाव में तो महागठबंधन उन्हीं के नेतृत्व में मैदान में था। बेहतरीन प्रदर्शन के बावजूद सत्ता तक पहुंच नहीं हुई।

इसका कारण कांग्रेस की स्ट्राइक रेट व माय (मुसलमान-यादव) समीकरण तक सिमटी राजद की चौहद्दी रही। हालांकि, तेजस्वी ने तब भी ए-टू-जेड की पैरोकारी की थी, जो अब बाप (बहुजन, अगड़ा, आधी आबादी, गरीब) बताया जा रहा।

युवाओं पर मेन फोकस

युवा मतदाताओं की संख्या को देखते हुए उन्होंने 10 लाख नौकरी व नियोजित शिक्षकों को समान वेतन का आश्वासन दिया था। तब बिहार में 18 से 49 आयु-वर्ग के मतदाताओं की संख्या 3.65 करोड़ से अधिक थी। इस बार वह संख्या 3.97 करोड़ से अधिक हो गई है। युवाओं व बेरोजगारों पर फोकस का यही कारण है।

इस संख्या में सवर्ण समाज की भी हिस्सेदारी है, जिसे लालू की सामाजिक अवधारणा ने परे धकेल दिया था। समय के साथ कम जनसंख्या वाली कई दूसरी जातियां भी राजद से बिदक गईं, इसीलिए तेजस्वी ने आर्थिक न्याय का दांव चला है, क्योंकि पढ़ाई-दवाई-कमाई हर वर्ग की आवश्यकता है।

Back to top button

Adblock Detected

Please consider supporting us by disabling your ad blocker